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________________ भावार्थ-शिष्य ने प्रश्न किया-भगवन् ! व्याख्याप्रज्ञप्ति में क्या वर्णन है ? आचार्य उत्तर में बोले-भद्र ! व्याख्याप्रज्ञप्ति में जीवों का स्वरूप प्रतिपादन किया गया है, और अजीवों का तथा जीवाजीवों की व्याख्या की गई है ! स्वसमय, परसमय और स्व-पर उभय सिद्धान्तों की व्याख्या की गयी है। लोक, अलोक और लोक-अलोक के स्वरूप का व्याख्यान किया गया है। व्याख्याप्रज्ञप्ति में परिमित वाचनाएं हैं। संख्यात अनुयोगद्वार, संख्यात वेढ,-श्लोकविशेष, संख्यात नियुक्तिएं, संख्यात संग्रहणिएं और संख्यात प्रतिपत्तिएं हैं। ___ अंग अर्थ से यह व्याख्याप्रज्ञप्ति पांचवां अंग है। एक श्रुतस्कन्ध, कुछ अधिक एक सौ इसके अध्ययन हैं। इसके दस हजार उद्देश, दस हजार समुद्देश, छत्तीस हजार प्रश्नोत्तर और दो लाख अट्ठासी हजार पदाग्र परिमाण हैं। संख्यात अक्षर, अनन्त गम और अनन्त पर्याय हैं। परिमित त्रस, अनन्त स्थावर, शाश्वत-कृत-निबद्ध-निकाचित जिनप्रज्ञप्त भावों का कथन, प्रज्ञापन, प्ररूपण, दर्शन, निदर्शन और उपदर्शन किया गया है। ... ____ व्याख्याप्रज्ञप्ति का पाठक तदात्मरूप बन जाता है, एवं ज्ञाता विज्ञाता बन जाता है। इसी प्रकार व्याख्याप्रज्ञप्ति में चरण-करण की प्ररूपणा की गयी है। यह ही व्याख्याप्रज्ञप्ति का स्वरूप है। सूत्र ५० ॥ टीका-इस सूत्र में व्याख्याप्रज्ञप्ति (भगवती) का संक्षिप्त परिचय दिया है। इसमें 41 शतक हैं, दस हजार उद्देशक हैं, 36 हजार प्रश्न एवं 36.हजार उत्तर हैं। आदि के आठ 8 शतक तथा 12वां, 14वां, 18वां और 20वां ये चौदह शतक दस-दस उद्देशकों में विभाजित हैं। शेष शतकों में उद्देशकों की संख्या हीनाधिक पाई जाती है। 15वें शतक में उद्देशक भेद नहीं हैं। इसमें सूत्रों की संख्या 867 है। इसकी विवेचन शैली प्रश्नोत्तर रूप में है। सभी प्रश्न गौतम स्वामी के ही नहीं हैं अपितु अन्य श्रावक-श्राविका, साधुओं, अन्य यूथिक परिव्राजक, संन्यासियों, देवताओं तथा, इन्द्रों के प्रश्न और पार्श्वनाथ के साधु तथा श्रावकों के भी प्रश्न हैं। इसी प्रकार सभी उत्तर भगवान महावीर के दिए हुए नहीं हैं, गौतम आदि मुनिवरों के दिए हुए भी हैं। कहीं-कहीं श्रावकों के द्वारा दिए हुए उत्तर भी हैं। यह सूत्र आज के युग में अन्य सूत्रों से विशालकाय है। इसमें पण्णवणा, जीवाभिगम, उववाई, राजप्रश्नीय, आवश्यक, नन्दी और जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति सूत्रों के नामोल्लेख भी किए हुए हैं। तथा इन सूत्रों के उद्धरण दिए हैं। इससे प्रतीत होता है कि व्याख्याप्रज्ञप्ति का संकलन बहुत पीछे हुआ है। अतः पाठकों को जिन सूत्रों के उद्धरण दिए हुए हैं, उनका अध्ययन पहले करना चाहिए ताकि पढ़ने और समझने में सुविधा रहे। इसमें सैद्धान्तिक, ऐतिहासिक, द्रव्यानुयोग और चरण-करणानुयोग की सविशेष व्याख्या है। इसमें बहुत से ऐसे विषय हैं जो उस सूत्र के विशेषज्ञों से समझने वाले हैं। स्वयमेव समझने से कठिनता प्रतीत होती है और अध्येता को प्रायः भ्रांति व संदेह उत्पन्न हो जाता है। इस प्रकार व्याख्याप्रज्ञप्ति का संक्षिप्त परिचय पूर्ण हुआ ।। सूत्र 50 ।। *456*
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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