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इसका उत्तर यह है कि जिज्ञासु मनुष्य दो प्रकार के होते हैं, व्युत्पन्नमति वाले और अव्युत्पन्नमति वाले । इनमें जो अव्युत्पन्नमति वाले व्यक्ति हैं, उनके विशिष्ट बोध के लिए सूत्रकार ने उपर्युक्त 12 भेदों का उपन्यास किया है, क्योंकि ये अक्षरश्रुत एवं अनक्षरश्रुत इन दोनों भेदों के द्वारा उपर्युक्त शेष भेदों का ज्ञान प्राप्त करने में असमर्थ होते हैं। उन्हें भी इस गहन विषय का ज्ञान हो सके, इस पुनीत लक्ष्य को दृष्टिगोचर रखते हुए सूत्रकार ने शेष भेदों का भी उल्लेख किया है। यह श्रुतज्ञान का विषय, केवल विद्वज्जन भोग्य ही न बन सके, अपितु सर्वसाधारण जिज्ञासु व्यक्तियों की रुचि भी श्रुतज्ञान की ओर बढ़ सके, इसलिए शेष 12 भेदों का वर्णन करना भी अनिवार्य हो जाता है ।। सूत्र 38 ।।
१. अक्षरश्रुत मूलम्-से किंतं अक्खर-सुअं? अक्खर-सुअंतिविहं पन्नत्तं, तं जहा-१. सन्नक्खरं, २. वंजणक्खरं, ३. लद्धिअक्खरं।
१. से किं तं सन्नक्खरं ? सन्नक्खरं अक्खरस्स संठाणागिई, से तं सन्नक्खरं।
२. से किं तं वंजणक्खरं ? वंजणक्खरं अक्खरस्स वंजणाभिलावो, से तं वंजणक्खरं।
३. से किं तं लद्धि-अक्खरं ? लद्धि-अक्खरं अक्खरलद्धियस्स लद्धिअक्खरं समुप्पज्जइ, तं जहा-सोइंदिअ-लद्धि-अक्खरं, चक्खिदियलद्धि-अक्खरं, घाणिंदिय-लद्धि-अक्खरं, रसणिंदिय- लद्धि-अक्खरं, फासिंदिय-लद्धि-अक्खरं, नोइंदिय-लद्धि-अक्खरं, से त्तं लद्धि-अक्खरं, से त्तं अक्खरसुओं ___ छाया-अथ किं तदक्षर-श्रुतम् ? अक्षर-श्रुतं त्रिविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा-१. संज्ञाक्षरं, २. व्यञ्जनाक्षरं, ३. लब्यक्षरम्।
१. अथ किं तत् संज्ञाक्षरम्? अक्षरस्य संस्थानाऽकृतिः, तदेतत्संज्ञाक्षरम्।
२. अथ किं तद्व्यञ्जनाक्षरं? व्यञ्जनाक्षरमक्षरस्य व्यञ्जनाभिलापः, तदेतद्व्यञ्जनाक्षरम्।
३. अथ किं तल्लब्ध्यक्षरं? लब्ध्यक्षरम्-अक्षरलब्धिकस्य लब्ध्यक्षरं समुत्पद्यते, तद्यथा- श्रोत्रेन्द्रिय-लब्ब्यक्षरं, चक्षुरिन्द्रिय-लब्ब्यक्षरं, घ्राणेन्द्रिय-लब्ध्यक्षरं, रसनेन्द्रिय-लब्ध्यक्षरं, स्पर्शेन्द्रिय-लब्यक्षरं, नोइन्द्रिय-लब्ब्यक्षरं, तदेतल्लब्यक्षरं, तदेतदक्षरश्रुतम्।
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