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________________ नो- नहीं, आगच्छंति-आते, असंखिज्जसमय पविट्ठा - असंख्यात समय में प्रविष्ट, , पुग्गलापुद्गल, गहण -ग्रहण में, नो-नहीं, आगच्छंति-आते, असंखिज्जसमय पविट्ठा- असंख्यात समय में प्रविष्ट, पुग्गला - पुद्गल, गहणं-ग्रहण में, आगच्छंति-आते हैं।, से तं पडिबोहगइस प्रकार यह प्रतिबोधक के, दिट्ठतेणं-दृष्टान्त से व्यञ्जन अवग्रह का वर्णन हुआ। भावार्थ-चार प्रकार का व्यञ्जन अवग्रह, छ प्रकार का अर्थावग्रह, छ प्रकार की ईहा छ प्रकार का अवाय और छ प्रकार की धारणा - इस प्रकार अठाईस - विध आभिनिबोधिकमतिज्ञान के व्यञ्जन अवग्रह की प्रतिबोधक और मल्लक के उदाहरण से प्ररूपणा करूंगा। शिष्य ने पूछा- गुरुदेव ! प्रतिबोधक के उदाहरण से व्यञ्जन अवग्रह का निरूपण किस प्रकार है? गुरुजी उत्तर में बोले- प्रतिबोधक के दृष्टान्त से, जैसे-य - यथानामक कोई व्यक्ति किसी सोये हुये पुरुष को "हे अमुक ! हे अमुक !!" इस प्रकार से जगाए । शिष्य ने गुरु से पूछा- भगवन् ! क्या ऐसा कहने पर उस पुरुष के कानों में एक समय के प्रवेश किए हुए पुद्गल-ग्रहण करने में आते हैं, दो समय के यावत् दस समय या, संख्यात समय, व असंख्यात समय के प्रविष्ट पुद्गल ग्रहण करने में आते हैं ? . ऐसा पूछने पर पन्नवक-गुरु ने शिष्य को उत्तर दिया- वत्स ! एक समय के प्रविष्ट पुद्गल ग्रहण करने में नहीं आते, न दो समय के यावत् दस समय के और न संख्यात समय के, अपितु असंख्यात समय के प्रविष्ट हुए पुद्गल ग्रहण करने में आते हैं। इस तरह यह प्रतिबोधक के दृष्टान्त से व्यञ्जन अवग्रह का स्वरूप हुआ। टीका - इस सूत्र में व्यंजनावग्रह को समझाने के लिए सूत्रकार ने प्रतिबोधक का दृष्टान्त देकर विषय को स्पष्ट किया है। जैसे कोई व्यक्ति गाढ़ निद्रा में सो रहा है, तब अन्य कोई आकर विशेष कारण से उस का नाम लेकर जगाता है, ओ देवदत्त ! ओ देवदत्त !! इस प्रकार उस सुप्त व्यक्ति को जगाने के लिए अनेक बार सम्बोधित किया। ऐसे प्रसंग को लक्ष्य में रखकर शिष्य ने गुरु से प्रश्न किया- भगवन् ! क्या एक सयम के प्रविष्ट हुए शब्द- पुद्गल श्रोत्र के द्वारा अवगत हो सकते हैं? गुरु ने इन्कार में उत्तर दिया। शिष्य ने पुनः प्रश्न किया-क्या दो समय यावत् दस, संख्यात तथा असंख्यात समय के प्रविष्ट हुए शब्द पुद्गल ग्रहण किए हुए अवगत होते हैं? गुरु ने उत्तर दिया- एक समय से लेकर संख्यात समय तक के प्रविष्ट हुए शब्द-पुद्गल श्रोत्र के द्वारा ग्रहण किए हुए अवगत नहीं हो सकते, अपितु असंख्यात समय तक के प्रविष्ट हुए शब्दपुद्गल ग्रहण किए जा सकते हैं। हां, यह बात ध्यान में अवश्य रखने योग्य है कि पहले समय से लेकर संख्यात समय पर्यन्त श्रोत्र में जो शब्द - पुद्गल प्रविष्ट हुए हैं, वे सब अव्यक्त ज्ञान के परिचायक हैं, जैसे कि कहा भी है- "जं वंजणोग्गहण - 1. आंखों की पलकें झपकने मात्र में असंख्यात समय लग जाते हैं। *371
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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