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________________ और असत् दोनों प्रकार से ग्रहण हो जाता है, किन्तु उसकी छानबीन करके सद्रूप को ग्रहण करना और असद्रूप का परिवर्जन करना, यह ईहा का कार्य है।' अवाय-उसी ईहितार्थ के निर्णय रूप जो अध्यवसाय हैं, उन्हें अवाय कहते हैं। अवाय, निश्चय, निर्णय, ये सब पर्यायान्तर नाम हैं। निश्चयात्मक एवं निर्णयात्मक ज्ञान को अवाय कहते हैं। ईहा द्वारा जाने हुए पदार्थ में विशिष्ट का निर्णय हो जाना अवाय है। धारणा-निर्णीत अर्थ को धारण करना ही धारणा है। निश्चय कुछ काल तक स्थिर रहता है, फिर विषयान्तर में उपयोग चले जाने पर वह निश्चय लुप्त हो जाता है। पर उससे ऐसे संस्कार पड़ जाते हैं, जिनसे भविष्य में कदाचित् कोई योग्य निमित्त मिल जाने पर निश्चित किए हुए उस विषय का स्मरण हो जाता है। जब अवायज्ञान, अत्यन्त दृढ़ हो जाता है, तब उसे धारणा कहते हैं। धारणा तीन प्रकार की होती है, जैसे कि अविच्युति, वासना और स्मृति। अवाय में लगे हुए उपयोग से च्युति न होना उसे अविच्युति कहते हैं, वह अविच्युति अधिक-से-अधिक अन्तर्मुहूर्त प्रमाण रहती है। अविच्युति से उत्पन्न हुए संस्कार को वासना कहते हैं, वह संस्कार संख्यात व असंख्यात काल पर्यन्त रह सकता है। कालान्तर में किसी पदार्थ के प्रत्यक्ष करने से तथा किसी निमित्त के द्वारा संस्कार प्रबुद्ध होने से जो ज्ञान उत्पन्न होता है, उसे स्मृति कहते हैं। जैसे कि कहा भी है "तदनन्तरं तदत्था विच्चवणं, जो उ वासणा जोगो । कालान्तरेण ज पुण, अनुसरणं धारणा सा उ ॥" • अवग्रह के बिना ईहा नहीं होती, ईहा के बिना निश्चय नहीं होता, निश्चय हुए बिना धारणा नहीं होती ।। सूत्र 27 ।। १. अवग्रह मूलम्-से किं तं उग्गहे ? उग्गहे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-१. अत्थुग्गहे य, २. वंजणुग्गहे य ॥ सूत्र २८॥ छाया-अथ कः सोऽवग्रहः? अवग्रहो द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-१. अर्थावग्रहश्च, २. व्यंजनावग्रहश्च ॥ सूत्र २८ ॥ -पदार्थ-से किं तं उग्गहे? -वह अवग्रह कितने प्रकार का है?, उग्गहे-अवग्रह, दुविहे-दो प्रकार का , पण्णत्ते-कहा गया है, तंजहा-यथा, अत्थुग्गहे य-अर्थावग्रह और, वंजणुग्गहे य-व्यंजनावग्रह। 1. भूयाभूयविसेसादाणच्चायाभिमुहमीहा। 2. ईहितविशेषनिर्णयोऽवायः।। 3. स एव दृढ़तमावस्थापन्नो धारणा। (प्रमाणनयतत्वालोक, परिच्छेद 2 सू० 9-10 वां। *357* -
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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