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आगमों के सूक्ष्म रहस्य को इस ढंग से समझाने लगे कि मन्दबुद्धि भी तत्त्वार्थ को सुगमता से हृदयंगम कर लेता। पहले पढ़े हुए शास्त्रों में मुनियों को कई प्रकार की शंकाएं थीं, उनको भी मुनि जी ने विस्तार से व्याख्या कर समझाया। साधुओं के मन में वज्रमुनि के प्रति अगाध भक्ति हो गई। थोड़े दिन विचरने के अनन्तर आचार्य पुनः उसी स्थान पर लौट आये। आचार्य ने वज्रमुनि की वाचना के विषय में साधुओं से पूछा। मुनि बोले-"आचार्य देव ! हमारी शास्त्र वाचना भली-भांति चल रही है, कृपा कर के वाचना का कार्य अब सदा के लिए वज्रमुनि को ही सौंप दीजिए।" आचार्य बोले-"आप लोगों का कथन ठीक है, वज्रमुनि के प्रति आप का सद्भाव और विनय प्रशंसनीय है। मैंने भी वज्रमुनि का महात्म्य समझाने के लिए ही वाचना का कार्य उसे सौंपा था।" वज्रमुनि का यह समग्र श्रुतज्ञान गुरु से दिया हुआ नहीं, अपितु सुनने मात्र से प्राप्त हुआ है। गुरुमुख से ज्ञान ग्रहण किए बिना कोई वाचनागुरु नहीं बन सकता। अतः गुरु ने अपना सम्पूर्ण ज्ञान वज्रमुनि को सिखला दिया।
ग्रामानुग्राम विहार-यात्रा करते हुए एक समय आचार्य दशपुर नगर में पधारे। उस समय आचार्य भद्रगुप्त वृद्धावस्था के कारण अवन्ती नगरी में स्थिरवास से विराजमान थे। आचार्य सिंहगिरि ने दो मुनियों के साथ वज्रमुनि को उनकी सेवा में भेजा। वज्रमुनि ने उनकी सेवा में रह कर दस पूर्वो का ज्ञान प्राप्त किया। मुनिवज्र को आचार्य पद पर स्थापना कर आचार्य सिंहगिरि अनशन कर स्वर्ग सिधार गये।
__ आचार्य श्री वज्र ग्रामानुग्राम धर्मोपदेश द्वारा जन-कल्याण में संलग्न हो गये। सुन्दर स्वरूप, शास्त्रीयज्ञान, विविध लब्धियों और आचार्य की अनेक विशेषताओं से आचार्य वज्र का प्रभाव दिग्दिगन्त में फैल गया। तत्पश्चात् चिरकाल तक संयम व्रत का आराधन कर पीछे अनशन द्वारा देवलोक में पधारे। वज्रमुनि जी का जन्म विक्रम संवत 26 में हुआ था और वि. संवत 114 में स्वर्गवास हुआ। उनकी आयु 88 वर्ष की थी। वज्रमुनि ने बचपन में ही माता के प्रेम की उपेक्षा कर संघ का बहुमान किया। ऐसा करने से माता का मोह भी दूर किया और स्वयं संयम ग्रहण कर शासन के प्रभाव को भी बढ़ाया। यह वज्रमुनि की पारिणामिकी बुद्धि
थी।
१६. चरणाहत-एक राजा तरुण था। एक बार तरुण सेवकों ने आकर उससे प्रार्थना की-"देव ! आप तरुण हैं, इस कारण आपकी सेवा में नवयुवक ही होने चाहिये। वे आप का प्रत्येक कार्य योग्यता पूर्वक सम्पादित करेंगे। वृद्ध कार्यकर्ता अवस्था में परिपक्व होने से किसी काम को भी अच्छी तरह नहीं कर पाते। अतः वृद्ध लोग आप की सेवा में शोभा नहीं देते। ___ यह बात सुनकर नवयुवकों की बुद्धि की परीक्षा करने के लिए राजा ने उन से पूछा-"यदि मेरे सिर पर कोई व्यक्ति पैर प्रहार करे तो उसे क्या दण्ड मिलना चाहिए? नवयुवकों ने उत्तर में कहा-"महाराज ! ऐसे नीच को तिल-तिल जितना काट कर मरवा देना चाहिए।"वृद्धों से भी राजा ने यह प्रश्न किया। वृद्धों ने उत्तर दिया-“देव ! हम विचार कर इसका उत्तर देंगे।"
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