SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 357
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बन्धनों से मुक्त हो जाऊं तथा माता को भी वैराग्य हो और वह भी इन बन्धनों से छूट जाये। इस प्रकार विचार कर बच्चे ने रात-दिन रोना आरम्भ कर दिया। माता ने उस का रोना बन्द करने के लिये अनेकों प्रयत्न किए, परन्तु निष्फल। माता इससे दुःखी हो गई। इधर ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए आचार्य सिंहगिरि पुनः तुम्बवन नगर में पधारे। भिक्षा का समय होने पर गुरु की आज्ञा लेकर धनगिरि और आर्यसमित नगर में जाने लगे। उस समय के शुभ शकुनों को देख, गुरु ने शिष्यों से कहा-"आज तुम्हें कोई महान् लाभ होगा, इसलिये सचित्त-अचित्त जो भी भिक्षा में मिले तुम ग्रहण कर लेना।" गुरु की आज्ञा शिरोधार्य करके मुनि युगल नगर में चले गये। ___ सुनन्दा उस समय अपनी सखियों के साथ बैठी बालक को शान्त करने का प्रयत्न कर रही थी, उसी समय दोनों मुनि उधर आ निकले। मुनियों को देखकर सुनन्दा ने मुनि धनगिरि से कहा-"मुनिवर ! आज तक इसकी रक्षा मैं करती रही, अब इसे आप सम्भालिये और रक्षा करें।" यह सुनकर मुनि धनगिरि पात्र निकालकर खड़े रहे और सुनन्दा ने बालक को पात्र में बैठा दिया। श्रावक-श्राविकाओं की उपस्थिति में बच्चे को मुनि ने ग्रहण कर लिया और उसी समय बालक ने रोना भी बन्द कर दिया। बालक को लेकर दोनों मुनि गुरु के पास वापिस चल दिए। भारी झोली उठाए हुए शिष्य को दूर से ही देख कर गुरु बोल उठे-"यह वज्र सदृश भारी पदार्थ क्या लाये हो?" धनगिरि ने प्राप्त भिक्षा गुरु के चरणों में रख दी। अत्यन्त तेजस्वी और प्रतिभाशाली बालक को देखकर गुरु बहुत हर्षित हुए और बोले-"यह बालक शासन का आधारभूत होगा और उसका नाम वज्र रख दिया। तत्पश्चात् लालन-पालन के लिए बच्चा संघ को सौंप आचार्य बहां से विहार कर गये। बच्चा दिनों-दिन बढ़ने लगा। कुछ दिनों के बाद माता सुनन्दा अपना पुत्र वापिस लेने के लिए गई। परन्तु संघ ने “यह मुनियों की धरोहर है" यह कहकर देने से इनकार कर दिया। किसी समय आचार्य सिंहगिरि अपने शिष्यों सहित फिर वहां पधारे। सुनन्दा आचार्य का आगमन सुनकर उनके पास बालक को मांगने गई। आचार्य के न देने पर वह राजा के पास पहुंची और अपना पुत्र वापिस लौटाने के लिए प्रार्थना की। राजा ने कहा-"एक तरफ बालक की माता बैठ जाए और दूसरी तरफ उसका पिता, बुलाने पर बालक जिधर चला जाए, वह उसी का होगा।" राजा द्वारा यह निर्णय देने पर अगले दिन राजसभा में माता सुनन्दा अपने पास खाने-पीने के पदार्थ और बहुत-से खिलौने लेकर नगर निवासियों के साथ बैठ गई तथा एक ओर संघ के साथ आचार्य तथा धनगिरि आदि मुनि विराजमान हो गये। राजा ने उपस्थित जन समूह के सामने कहा-"पहले बालक को उसका पिता बुलाए।" यह सुनकर नगर निवासियों ने कहा-"देव ! बच्चे की माता दया की पात्र है, पहले उसे बुलाने की आज्ञा देनी चाहिए।" उपस्थित जनता की बात मान कर राजा ने पहले माता को बुलाने की आज्ञा दी। आज्ञा प्राप्त कर माता ने बच्चे को बुलाया तथा उसे बहुत प्रलोभन, खिलौने और खाने पीने की वस्तुएं *3486
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy