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विकथा के लिए, जीवन भ्रष्ट तथा पथभ्रष्ट के लिए एवं अपने तथा दूसरों के लिए अहितकर ही होते हैं। भाष्यकार ने अज्ञान का स्वरूप निम्नलिखित प्रकार से वर्णन किया है
__“सय सय विसेसणाओ, भवहेउ जहिच्छिओवलंभाओ।
नाणफलाभावाओ, मिच्छद्दिट्ठिस्स अण्णाणं ॥" इसका भावार्थ ऊपर लिखा जा चुका है ।। सूत्र 25 ।।
आभिनिबोधिकज्ञान मूलम्-से किं तं आभिणिबोहियनाणं ? आभिणिबोहियनाणं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा-सुयनिस्सियं च, असुयनिस्सियं च।
से किं तं असुयनिस्सियं? असुयनिस्सियं चउव्विहं पण्णत्तं, तं जहा१. उप्पत्तिया, २. वेणइआ, ३. कम्मया, ४. परिणामिया। बुद्धी चउव्विहा वुत्ता, पंचमा नोवलब्भइ ॥६८॥ सूत्र २६ ॥
छाया-अथ किं तदाभिनिबोधिकज्ञानम्? आभिनिबोधिकज्ञानं द्विविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा-श्रुतनिश्रितंच, अश्रुतनिश्रितञ्च। ..' अथ किं तदश्रुतनिश्रितम् ? अश्रुतनिश्रितं चतुर्विधं प्रज्ञप्तं तद्यथा
१. औत्पत्तिकी २. वैनयिकी ३. कर्मजा ४. पारिणामिकी। . बुद्धिश्चतुर्विधोक्ता, पंचमी नोपलभ्यते ॥६८॥ सूत्र ॥ २६ ॥ पदार्थ- से किं तं आभिणिबोहियनाणं?-वह आभिनिबोधिक ज्ञान कौन सा है?, आभिणिबोहियनाणं-आभिनिबोधिक ज्ञान, दुविहं-दो प्रकार का है, तं जहा-जैसेसुयनिस्सियं च-श्रुतनिश्रित और, असुयनिस्सियं च-अश्रुतनिश्रित, से किं तं असुयनिस्सियं ?-अश्रुतनिश्रित कौन सा है ? असुयनिस्सियं-अश्रुतनिश्रित, चउव्विहं-चार प्रकार से है, तं जहा-जैसे, उप्पत्तिया-औत्पत्तिकी, वेणइया-वैनयिकी, कम्मया-कर्मजा, परिणामिया-पारिणामिकी, चउविहा-चार प्रकार की, बुद्धी-बुद्धि, वुत्ता-कही गयी है, पंचमा-पांचवीं, नोवलब्भइ-उपलब्ध नहीं होती।
भावार्थ-भगवन् ! वह आभिनिबोधिकज्ञान किस प्रकार का है?
उत्तर में गुरुजी बोले-भद्र ! आभिनिबोधिकज्ञान-मतिज्ञान दो प्रकार का है, जैसे१. श्रुतनिश्रित और, २. अश्रुतनिश्रित।
शिष्य ने पुनः प्रश्न किया-भगवन् ! अश्रुतनिश्रित कितने प्रकार का है? गुरुजी बोले-अश्रुतनिश्रित चार प्रकार का है, जैसे
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