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परोक्षज्ञान मूलम्-से किं तं परुक्खनाणं ? परुक्खनाणं दुविहं पन्नत्तं, तं जहा-आभिणिबोहिअनाणपरोक्खं च, सुअनाणपरोक्खं च, जत्थ आभिणिबोहियनाणं तत्थ सुयनाणं, जत्थ सुअनाणं तत्थाभिणिबोहियनाणं, दोऽवि एयाई अण्णमण्णमणुगयाई, तहवि पुण इत्थ आयरिआ नाणत्तं पण्णवयंति-अभिनिबुज्झइ त्ति आभिणिबोहिअनाणं, सुणेइ त्ति सुअं, मइपुव्वं जेण सुअं, न मई सुअपुब्विआ ॥ सूत्र २४ ॥
छाया-अथ किं तत् परोक्षज्ञानम्? परोक्षज्ञानं द्विविधं प्रज्ञप्तं, वद्यथा-आभिनिबोधिकज्ञानपरोक्षञ्च, श्रुतज्ञानपरोक्षञ्च, यत्राभिनिबोधिकज्ञानंतत्र श्रुतज्ञानं, यत्र श्रुतज्ञानं तत्राभिनिबोधिकज्ञानं, द्वे अपि एते अन्यदन्यदनुगते, तथापि पुनरत्राऽऽचार्या नानात्वं प्रज्ञापयन्ति-अभिनिबुध्यत इत्याभिनिबोधिकज्ञानं, श्रृणोति इति श्रुतं, मतिपूर्व येन श्रुतं, न मतिः श्रुतपूर्विका ॥ सूत्र २४ ॥
पदार्थ-से किं तं परुक्खनाणं?-वह परोक्षज्ञान कितने प्रकार का है? परुक्खनाणंपरोक्षज्ञान, दुविहं-दो प्रकार का, पन्नत्तं-प्रतिपादित किया गया है, तं जहा-जैसेआभिणिबोहिअनाणपरोक्खं च-आभिनिबोधिक ज्ञान परोक्ष और, सुअनाणपरोक्खं चश्रुतज्ञानपरोक्ष 'च' शब्द स्वगत अनेक भेदों का सूचक है, जत्थ-जहां, आभिणिबोहियनाणं-आभिनिबोधिकज्ञान है, तत्थ-वहां, सुयनाणं-श्रुतज्ञान है। जत्थ-जहां, सुयनाणंश्रुतज्ञान है, तत्थ-वहां, आभिणिबोहियनाणं-आभिनिबोधिक ज्ञान है। दोऽवि-दोनों ही, एयाइं-ये, अण्णमण्णमणुगयाइं- अन्योऽन्य अनुगत हैं, तहवि-फिर भी, पुण-अनुगत होने पर भी, इत्थ-यहां पर, आयरिआ-आचार्य, नाणत्तं-भेद, पण्णवयंति प्रदिपादन करते हैं-अभिनिबुग्झइ त्ति-जो सन्मुख आए हुए पदार्थों को प्रमाणपूर्वक अभिगत करता है, वह, आभिणिबोहिअनाणं- आभिनिबोधिक ज्ञान है, किन्तु, सुणेइत्ति-जो सुना जाए वह, सुअंश्रुत है, मइपुव्वं-मति पूर्वक, जेण-जिससे, सुअं-श्रतज्ञान होता है, मई-मति, सुअपुव्विआ-श्रुतपूर्विका, न-नहीं है।
भावार्थ-शिष्य ने प्रश्न किया-गुरुवर ! वह परोक्षज्ञान कितने प्रकार का है?
उत्तर में गरुदेव बोले-भद्र। परोक्षज्ञान दो प्रकार का प्रतिपादन किया गया है। ... जैसे- ..
. १. आभिनिबोधिक ज्ञान परोक्ष और २. श्रुतज्ञान परोक्ष। जहां पर आभिनिबोधिक ज्ञान है, वहाँ पर श्रुतज्ञान भी है। जहाँ श्रुतज्ञान है, वहाँ आभिनिबोधिक ज्ञान है। ये दोनों ही अन्योऽन्य अनुगत हैं। तथापि अनुगत होने पर भी आचार्य यहाँ इनमें परस्पर भेद
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