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विभिन्न दो भाषाएं हैं, एक नहीं, वैसे ही ज्ञान और दर्शन भी दो विभिन्न उपयोग हैं, एक नहीं। ____5. नन्दी सूत्र में मुख्यतया पांच ज्ञान का वर्णन है, चार दर्शनों का नहीं। केवलज्ञान की तरह केवलदर्शन भी अपना स्वतंत्र अस्तित्व रखता है। इसकी पुष्टि के लिए सोमिल ब्राह्मण के प्रश्नों का उत्तर देते हुए भगवान महावीर ने कहा है-सोमिल ! मैं ज्ञान और दर्शन की अपेक्षा द्विविध हूं।' भगवान के इस कथन से स्वयं सिद्ध है कि दर्शन भी ज्ञान की तरह स्वतंत्र सत्ता रखता है। नन्दीसूत्र में सम्यक्श्रुत के अंतर्गत उप्पन्न-नाण-दसणधरेहिं इसमें ज्ञान के अतिरिक्त दर्शनपद भी साथ ही जोड़ा है। इससे भी सिद्ध होता है कि केवली में दर्शन अपना अस्तित्व अलग रखता है। केवलज्ञान और केवलदर्शन यदि दोनों का विषय एक ही होता तो भगवान महावीर ऐसा क्यों कहते कि मैं द्विविध हूं। जब मनःपर्यवज्ञान का कोई दर्शन नहीं तब ‘पासइ' क्रिया का प्रयोग क्यों किया? इसका उत्तर मनःपर्यव ज्ञान के प्रकरण में दिया जा चुका है। . ___अंत में सिद्धांतवादी कहते हैं-केवली जिससे देखता है वह दर्शन है और जिससे जानता है वह ज्ञान है, कहा भी है
“जह पासइ तह पासउ,पासइ जेणेह दंसणं तं से।
जाणइ जेणं अरिहा, तं से नाणं ति घेत्तव्वं ॥" - नयों की दृष्टि से उक्त विषय का समन्वय जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण एकान्तर-उपयोग के अनुयायी हुए हैं, उनके शब्द निम्नोक्त
"कस्स व नाणुमयमिणं, जिणस्स जइ होज्ज दोन्नि उवओगा। .. नणं न होन्ति जुगवं, जओ निसिद्धा सुए बहुसो ॥"
युगपदुपयोगवाद के समर्थक सिद्धसेन दिवाकर हुए हैं। वृद्धवादी आचार्य अभेदवाद के . समर्थक रहे हैं, प्रवर्तक नहीं। वे केवलज्ञान के अतिरिक्त केवलदर्शन की सत्ता मानने से ही इन्कार करते रहे।
उपाध्याय यशोविजय जी ने उपर्युक्त तीन अभिमतों का समन्वय नयों की शैली से किया है, जैसे कि ऋजुसूत्र नय के दृष्टिकोण से एकान्तर-उपयोगवाद उचित जान पड़ता है। व्यवहारनय के दृष्टिकोण से युगपद्-उपयोगवाद सत्य प्रतीत होता है। संग्रह नय से अभेद-उपयोगवाद समुचित जान पड़ता है।
कुछ आधुनिक विद्वानों का अभिमत है कि सिद्धसेन दिवाकर युगपद्वाद के नहीं,
1. भगवती सूत्र, शo 18 उ0 10 ।
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