________________
तंजहा-यथा, उज्जुमई-ऋजुमति, विउलमई य-विपुलमति, 'च' शब्द स्वगत अनेक द्रव्य, क्षेत्रादि भेदों का सूचक है, तं-वह,समासओ-संक्षेप से, चउव्विहं- चार प्रकार का, पन्नत्तं-प्रज्ञप्त है, तंजहा-जैसे, दव्वओ-द्रव्य से, खित्तओ-क्षेत्र से, कालओ-काल से, भावओ-भाव से, तत्थ-उन चारों में, दव्वओ णं-द्रव्य से 'णं' वाक्यालङ्कार में, उज्जुमई- ऋजुमति, अणते-अनन्त, अणंतपएसिए-अनन्त प्रदेशिक, खंधे-स्कन्धों को, जाणइ-जानता, पासइदेखता है, च-और एव-अवधारणार्थ में, ते-उन स्कन्धों को, विउलमई-विपुलमति, अब्भहियतराए-अधिकतर, विउलतराए-प्रभूततर, विसुद्धतराए-विशुद्धतर, वितिमिरतराएभ्रमरहित, जाणइ-जानता, पासइ-देखता है।
खित्तओ णं-क्षेत्र से, उज्जुमई य-ऋजुमति, जहन्नेणं-जघन्य, अंगुलस्स-अंगुल के, असंखेज्जइभागं-असंख्यातवें भागमात्र, उक्कोसएणं-उत्कर्ष से , अहे-नीचे, जाव-यावत्, इमीसे-इस, रयणप्पभाए-रत्नप्रभा, पुढवीए-पृथ्वी के, उवरिमहेट्ठिल्ले-ऊपर ने नीचे, खुडुगपयरे-क्षुल्लकप्रतर को, उड्ढं-ऊपर, जाव-यावत्, जोइसस्स-ज्योतिषचक्र के, उवरिमतले-उपरितल को, तिरियं-तिर्यक्, जाव-यावत्, अंतोमणुस्सखित्ते-मनुष्यक्षेत्र पर्यन्त, अड्ढाइज्जेसु-अढाई, दीवसमुद्देसु-द्वीपसमुद्रों में, पन्नरससुकम्मभूमिसु-पन्द्रह कर्मभूमियों में, तीसाए अकम्मभूमिसु-तीस अकर्मभूमियों में, छप्पन्नाए-अंतरदीवगेसु-छप्पन्न अन्तरद्वीपों में, सन्निपंचेंदियाणं-संज्ञिपंचेन्द्रिय, पज्जत्तयाणं-पर्याप्तों के, मणोगए-मनोगत, भावे-भावों को, जाणइ-जानता, पासइ-देखता है, तंचेव-उसी को, विउलमई-विपुलमति, अड्ढाइज्जेहिमगुलेहि-अढाई अंगुल से, अब्भहियतरं-अधिकतर, विउलतरं-विपुलतर, विसुद्धतरं-विशुद्धतर, वितिमिरतरागं-वितिमिरतर, खित्तं-क्षेत्र को, जाणइ-जानता और, पासइ-देखता है।
कालओ णं-काल से, उज्जुमई-ऋजुमति, जहन्नेणं-जघन्य से, पलिओवमस्सपल्योपम के, असंखिज्जइभाग-असंख्यातवें भाग को, अतीयमणागयं- अतीत -अनागत, वा-समुच्चयार्थ में, कालं-काल को, जाणइ-जानता, पासइ-देखता है, तं चेव-उसी को, विउलमई-विपुलमति, अब्भहियतरागं-कुछ अधिक, विउलतरागं-विपुलर, विसुद्धतरागंविशुद्धतर, वितिमिरतरागं-वितिमिरतर काल को, जाणइ-जानता, पासइ-देखता है।
भावओ णं-भाव से, उज्जुमई-ऋजुमति, अणते-अनन्त, भावे-भावों को, जाणइ-जानता, पासइ-देखता है, तं चेव-उसी को, विउलमई-विपुलमति, अब्भहियतरागं-कुछ अधिक, विउलतरागं-विपुलतर, विसुद्धतरागं-विशुद्धतर, वितिमिरतरागंवितिमिरतर, भावं-भाव को, जाणइ-जानता व, पासइ-देखता है। ..
भावार्थ-और पुनः वह मनःपर्यवज्ञान दो प्रकार से उत्पन्न होता है, यथा-ऋजुमति और विपुलमति। वह मनःपर्यवज्ञान दो प्रकार का होता हुआ भी चार प्रकार से है, यथा
* 239 *