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पदार्थ-जइ-यदि, संखेज्जवासाउय-कम्मभूमिय-गब्भवक्कंतिय-मणुस्साणंसंख्यातवर्षायु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को तो, किं-क्या, पज्जत्तग-पर्याप्त, संखेज्जवासाउय-कम्मभूमिय-गब्भवक्कंतिय-मणुस्साणं-संख्यात वर्ष वाले कर्म भूमिज गर्भज मनुष्यों को या, अप्पज्जत्तग-अपर्याप्त, संखेज्जवासाउय-कम्मभूमिय गब्भवक्कंतियमणुस्साणं?-संख्यातवर्ष आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को, गोयमा!-गौतम ! पज्जत्तग-पर्याप्तक, संखेज्जवासाउय-कम्मभूमिय -गब्भवक्कंतिय- मणुस्साणं-संख्यात वर्ष आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को होता है, अप्पज्जत्तग-अपर्याप्त, संखेज्जवासाउय- संख्यातवर्ष आयुष्क, कम्मभूमिय-कर्मभूमिज, गब्भवक्कंतिय-गर्भज, मणुस्साणंमनुष्यों को, नो-नहीं उत्पन्न होता है।
भावार्थ-यदि संख्यातवर्ष आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को होता है तो क्या पर्याप्त संख्यातवर्ष आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को या असंख्यात वर्ष आयुष्य वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को ? गौतम ! पर्याप्त संख्यात वर्ष आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को होता है, अपर्याप्त को नहीं।।
टीका-इस सूत्र में गौतम स्वामी ने मन:पर्यवज्ञान के विषय में आगे प्रश्न किया है कि भगवन् ! संख्यातवर्ष की आयु वाले, कर्मभूमिज, गर्भज मनुष्य दो प्रकार के होते हैं, पर्याप्त और अपर्याप्त, इनमें से किन को उक्त ज्ञान हो सकता है? इसका उत्तर भगवान ने दिया कि पर्याप्त मनुष्यों को हो सकता है, अपर्याप्त को नहीं।
पर्याप्त और अपर्याप्त जिस कर्म प्रकृति के उदय से मनुष्य स्व-योग्य पर्याप्ति को पूर्ण करे, वह पर्याप्त और इससे विपरीत जिसके उदय से स्वयोग्य पर्याप्ति पूर्ण न कर सके, उसे अपर्याप्त कहते हैं। पर्याप्तियां 6 होती हैं, जैसे कि आहारपर्याप्ति, शरीरपर्याप्ति, इन्द्रियपर्याप्ति, श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति, भाषापर्याप्ति और मन:पर्याप्ति। इन का विशेष विवरण निम्नलिखित है- . . (१) आहार-पर्याप्ति-जिस शक्ति से जीव आहार योग्य बाह्य पुद्गलों को ग्रहण करके खल और रस रूप में बदलता है, वह आहार पर्याप्ति है। ..
(२) शरीर-पर्याप्ति-जिस शक्ति द्वारा रस-रूप में परिणत आहार को असृग्, मांस, मेधा, अस्थि, मज्जा, शुक्र-शोणित आदि धातुओं में परिणत करता है, उसे शरीर-पर्याप्ति कहते हैं। . (३) इन्द्रिय-पर्याप्ति-पांच इन्द्रियों के योग्य पुद्गलों को ग्रहण करके अनाभोग निवर्तित योगशक्ति द्वारा उन्हें इन्द्रियपने में परिणत करने की शक्ति को इन्द्रिय-पर्याप्ति कहते हैं। .
(४) श्वासोच्छ्वास-पर्याप्ति-उच्छ्वास के योग्य पुद्गलों को जिस शक्ति के द्वारा ग्रहण करता और छोड़ता है, उसे श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति कहते हैं।
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