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________________ और द्रव्य की वृद्धि विकल्प से होती है, जैसे कि भाष्यकार ने लिखा है "काले पवड्ढमाणे, सव्वे दव्वादओ पवड्ढन्ति । खेत्ते कालो भइओ, वड्ढन्ति उ दव्व-पज्जाया ॥" अर्थात् काल की वृद्धि होने पर द्रव्य, क्षेत्र और भाव की वृद्धि नियमेन है। क्षेत्र की वृद्धि होने पर काल की भजना है, किन्तु जब द्रव्य और पर्याय की वृद्धि होती है, तब क्षेत्र और काल की वृद्धि में भजना-विकल्प है। ___ कौन किससे सूक्ष्म है ? मूलम्-८. सुहुमो य होइ कालो, तत्तो सुहुमयरं हवइ खित्तं । अंगुल सेढी मित्ते, ओसप्पिणीओ असंखिज्जा ॥ ६२ ॥ . से त्तं वड्ढमाणयं ओहिनाणं ॥ सूत्र १२ ॥ छाया-८. सूक्ष्मश्च भवति कालः, ततः सूक्ष्मतरं भवति क्षेत्रम् । अगुलश्रेणिमात्रे, अवसर्पिण्योऽसंख्येयाः ॥ ६२ ॥ . तदेतद् वर्द्धमानकमवधिज्ञानम् ॥ सूत्र १२ ॥ __ पदार्थ-सुहुमो य होइ कालो-काल सूक्ष्म होता है, तत्तो-और काल से, खिसं-क्षेत्र, सुहुमयरं-सूक्ष्मतर, भवइ-होता है, जिससे, अंगुलसेढी मित्ते-अंगुल मात्र श्रेणी रूप में, असंखिज्जा-असंख्यात, ओसप्पिणीओ-अवसर्पिणियों के समय परिमाण प्रदेश होते हैं। सेत्तं-इस प्रकार, वड्ढमाणयं-वर्द्धमानक, ओहिनाणं-अवधिज्ञान का स्वरूप है। भावार्थ-काल सूक्ष्म होता है, उससे भी क्षेत्र सूक्ष्मतर होता है, जिससे अंगुल मात्र क्षेत्र श्रेणिरूप में आकाश के प्रदेश समय की गणना से गिने जाएं तो असंख्यात अवसर्पिणियों के समय परिमाण प्रदेश होते है। अर्थात् असंख्यात् कालचक्र उनकी गिनती में लगते हैं। इस तरह यह वर्द्धमानक अवधिज्ञान का वर्णन है ॥ १२॥ टीका-प्रस्तुत गाथा में किसकी अपेक्षा कौन सूक्ष्म है, इसका उत्तर सूत्रकार ने स्वयं दिया है। उन्होंने कहा-काल सूक्ष्म है, किन्तु वह क्षेत्र, द्रव्य और भाव की अपेक्षा से स्थूल है, क्षेत्र काल की अपेक्षा से सूक्ष्म है,क्योंकि प्रमाणागुल बाहल्य विष्कम्भ श्रेणि में आकाश प्रदेश इतने हैं, यदि उन प्रदेशों का समय-समय में अपहरण किया जाए, तो निर्लेप होने में असंख्यात अवसर्पिणी तथा उत्सर्पिणी बीत जाएं। क्षेत्र के एक-एक आकाश प्रदेश पर अनन्तप्रदेशी स्कन्ध अवस्थित हैं। द्रव्य की अपेक्षा भाव सूक्ष्म है क्योंकि उन स्कन्धों में अनन्त परमाणु हैं, प्रत्येक परमाणु में वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श की अपेक्षा से अनन्त पर्यायें वर्तमान हैं। काल, क्षेत्र, द्रव्य और भाव ये क्रमशः सूक्ष्म, सूक्ष्मतर हैं और उत्क्रम से पूर्व-पूर्व *210*
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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