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" हीयमानप्रतिपातिनोः कः प्रतिविशेषः ? इति चेद् - उच्यते, हीयमानकं पूर्वावस्थातोऽधोऽधो ह्रासमुपगच्छदभिधीयते, यत्पुनः प्रदीप इव निर्मूलमेककालमपगच्छति तत्प्रतिपातिः । "
६. अप्रतिपातिक - जो अवधिज्ञान केवल ज्ञान होने से पहले नहीं जाता तथा जिसका स्वभाव पतनशील नहीं है, उसे अप्रतिपाति अवधिज्ञान कहते हैं।
यहां शंका उत्पन्न होती है कि आनुगामिक और अनानुगामिक इन दो भेदों में ही शेष भेद अन्तर्भूत हो सकते हैं, तो फिर इन को पृथक्-पृथक् क्यों ग्रहण किया है ? समाधानयद्यपि उपर्युक्त दोनों भेदों में शेष चार भेद भी अन्तर्भूत हो सकते हैं, तदपि वर्धमानक और हीयमानक आदि विशेष भेद जानने के लिए इनका पृथक् न्यास किया गया है। क्योंकि ज्ञान के विशिष्ट भेदों को जानने के लिए ही ज्ञानी महापुरुष शास्त्रारंभ का प्रयास करते हैं। अतः जो भेद-प्रभेद दिए जाते हैं, उनमें मुख्योद्देश्य वस्तु स्वरूप को समझाने का ही होता है, न कि व्यर्थ ही ग्रंथ का कलेवर बढ़ाने का | सूत्र 9 ॥
आनुगामिक अवधिज्ञान
मूलम् से किं तं आणुगामियं ओहिनाणं ? आणुगामियं ओहिनाणं दुविहं पण्णत्तं तं जहा - अंतंगयं च मज्झगयं च ।
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से किं तं अंतगयं ? अंतगयं तिविहं पण्णत्तं, तंज़हा - १. पुरओ अंतगयं २. मग्गओ अंतगयं ३. पासओ अंतगयं ।
से किं तं पुरओ अंतगयं ? पुरओ अंतगयं - से जहानामए केइ पुरिसे उक्कं वा, चडुलियं वा, अलायं वा, मणिं वा, पईवं वा, जोइं वा, पुरओ काउं पणुल्लेमाणे २ गच्छेज्जा, से त्तं पुरओ अंतगयं ।
से किं तं मग्गओ अंतगयं ? मग्गओ अंतगयं से जहानामए केइ पुरिसे उक्कं वा, चडुलियं वा, अलायं वा, मणिं वा, पईवं वा, जोइं वा, मग्गओ काउं अणुकड्ढेमाणे २ गच्छिज्जा, से त्तं मग्गओ अंतगयं ।
से किं तं पासओ अंतगयं ? पासओ अंतगयं से जहानामए केइ पुरिसे उक्कं वा, चडुलियं वा, अलायं वा, मणिं वा, पईवं वा, जोइं वा, पासओ काउं परिकड्ढेमाणे २ गच्छिज्जा, से त्तं पासओ अंतगयं ।
से किं तं मज्झगयं ? मज्झगयं - से जहानामए केइ पुरिसे उक्कं वा,
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