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जो रत्न की तरह असंस्कृत होते हैं, उन रत्नों को जैसे चाहें, उसी तरह बनाया जा सकता है, ऐसे ही अनभिज्ञ श्रोताओं की सभा को हे शिष्य ! तुम अज्ञायिका परिषद् जानो ।
मूलम् - दुव्विअड्ढा जहा
न य कत्थइ निम्माओ, न य पुच्छइ परिभवस्स दोसेणं । aथिव्व वायपुण्णो, फुट्टइ गामिल्लय विअड्ढो ॥ ५४ ॥ छाया - दुर्विदग्धा यथा
न च कुत्राऽपि निर्मातः, न च पृच्छति परिभवस्य दोषेण । वस्तिरिव वातपूर्णः, स्फुटति ग्रामेयको विदग्धः ॥ ५४ ॥
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पदार्थ - दुव्विअड्ढा - दुर्विदग्धा सभा, जहा- जैसे, गामिल्लो- ग्रामीण, विअड्ढो - पंडित, कत्थइ - किसी विषय में, निम्माओ - पूर्ण, न य- नहीं है और, न य-न ही, परिभवस्स-तिरस्कार के, दोसेणं-दोष अर्थात् भय से, पुच्छइ - किसी से पूछता है, किन्तु, वायपुण्णो- वातपूर्ण, वत्थिव्व-मशक की भांति, फुट्ट - फूला हुआ रहता है।
जैसे
भावार्थ - दुर्विदग्धा सभा,
जिस प्रकार कोई ग्रामीण पण्डित किसी भी शास्त्र अथवा विषय में संपूर्ण नहीं है, न वह अपने अनादर के भय से किसी विद्वान् से पूछता ही है, और अपनी प्रशंसा सुनकर मिथ्याभिमान से वस्ति-मशक की तरह फूला हुआ रहता है। इस प्रकार के जो लोग हैं, उनकी सभा को हे शिष्य ! तुम दुर्विदग्धा सभा समझो।.
टीका-इन गाथाओं में सूत्रकार ने अनुयोग के योग्य परिषद् के विषय में वर्णन किया श्रोताओं के समूह को परिषद् कहते हैं। शास्त्र की व्याख्या करते समय अनुयोगाचार्य को पहले परिषद् की परख करनी चाहिए, क्योंकि श्रोता विभिन्न प्रकृति के होते हैं। इसलिए परिषद् के तीन भेद किए हैं
1. जिस परिषद् में तत्वजिज्ञासु, सम्यग्दृष्टि, बुद्धिमान, गुणग्राही, विवेकशील, विनीत, शांत, प्रतिभाशाली, सुशिक्षित, श्रद्धालु, आत्मान्वेषी, परित्तसंसारी, शुक्लपक्षी, शम-संवेगनिर्वेद, अनुकम्पा और आस्था आदि गुणसम्पन्न श्रोता हों, उनकी परिषद् को विज्ञ परिषद् कहते हैं। यह परिषद् सर्वथा उचित है। जैसे उत्तम हंस, पानी को छोड़कर दूध का सेवन करते हैं। घोंघे छोड़कर मोती खाते हैं, वैसे ही गुणसम्पन्न श्रोता दोष-अवगुणों को छोड़कर केवल
कोही ग्रहण करते हैं। यहां परिषद् के प्रकरण में विज्ञ परिषद् ही सर्वोत्तम परिषद् है ।
2. जो श्रोता पशु-पक्षी के बच्चे के समान प्रकृति से मुग्ध होते हैं, उन्हें इच्छानुसार भद्र या क्रूर जैसे भी बनाना चाहें बना सकते हैं। ऐसे भी पशु-पक्षी होते हैं, जिनकी कला देखकर इन्सान आश्चर्यचकित हो जाते हैं। इसी प्रकार जिनका हृदय मत-मतान्तरों की कलुषित
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