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________________ भी वह अन्दर से बिल्कुल नहीं भीगता, प्रत्युत शुष्क ही रहता है। वह पत्थर चाहे सहस्रों वर्ष पानी में पड़ा रहे, फिर भी उसके अन्दर आर्द्रता नहीं पहुंचती। इसी प्रकार जिन आत्माओं को तीर्थंकर अथवा गणधर आदि भी उपदेश द्वारा सन्मार्ग में लाने के लिए असमर्थ हैं, उन्हें सामान्य आचार्य कैसे ला सकते हैं ? गौशालक-आजीवक और जमाली निन्हव को महावीर स्वामी भी न समझा सके तथा देवदत्त को गौतम बुद्ध, दुर्योधन को कृष्ण और रावण को राम भी सन्मार्ग पर लाने में सर्वथा असफल रहे। ऐसी स्थिति में यदि कोई चाहे कि मैं किसी दुराग्रही को समझा दूं तो यह कभी हो नहीं सकता। ऐसे व्यक्ति श्रुत-ज्ञान के सर्वथा अनधिकारी हैं। अतः परिवर्जनीय हैं। (२) कुडग-संस्कृत में इसे कुटक कहते हैं, इसका अर्थ होता है घट-घड़ा। वे दो प्रकार के होते हैं, कच्चे और पक्के। इनमें जो अग्नि के द्वारा नहीं पकाए गए केवल धूप से ही सूखे हुए हैं, वे घट पानी भरने के सर्वथा अयोग्य हैं । इसी प्रकार जो स्तनन्धेय अबोध शिशु है, वह भी कच्चे घड़े की तरह श्रुतज्ञान के अयोग्य है, अर्थात् वह अभी शास्त्रीय ज्ञान को प्राप्त करने में असमर्थ है। ___पक्के घट दो प्रकार के होते हैं-नवीन और पुराने। इनमें नवीन घट सर्वथा श्रेष्ठ हैं, उनमें जो भी उत्तम.पदार्थ डाले जाते हैं, वे सुरक्षित, ज्यों के त्यों, रहते हैं। उनमें जल्दी विकृति नहीं आती। ग्रीष्म ऋतु में डाला हुआ गर्म पानी भी कुछ घण्टों में शीतल हो जाता है। वैसे ही लघुवय में दीक्षित हुए मुनि को जिस प्रकार की शिक्षा दी जाती है, वह उसे उसी प्रकार ग्रहण करता है, क्योंकि पात्र नवीन है। पुराने घट दो प्रकार के होते हैं-एक वे जिनमें अभी तक पानी भी नहीं डाला, बिल्कुल कोरे ही हैं। दूसरे वे जो अन्य वस्तुओं से वासित हो चुके हैं। इसी प्रकार कुछ एक श्रोता ऐसे होते हैं, जिन्होंने युवावस्था में अभी कदम रखे ही हैं, फिर भी मिथ्यात्व के कलंकपंक से सर्वथा अलिप्त हैं, तथा विषय कषायों से भी दूर हैं, ऐसे व्यक्ति श्रुतज्ञान के सुपात्र ही हैं, कुपात्र नहीं। ' जो घट अन्य वस्तुओं से वासित हो गए हैं, वे भी दो प्रकार के होते हैं-एक वे जो रूह-केवड़ा, रूह गुलाब इत्यादि सुरभित पदार्थों से वासित हैं और दूसरे वे जो सुरा, मद्य, घासलेट (मिट्टी का तेल) इत्यादि वस्तुओं से दुर्गन्धित हो रहे हैं, वे दुर्वासित कहलाते हैं। इनमें जो श्रोता सम्यक्त्व-सम्यग्ज्ञान आदि सद्गुणों से सुवासित हैं, वे श्रुतज्ञान के सर्वथा योग्य हैं। दुर्वासित घट दो प्रकार के होते हैं-एक वे जिन्होंने प्रयोग से या कालान्तर में स्वतः दुर्गन्ध को छोड़ दिया है, अब उनमें कोई दुर्गंध नहीं आती। दूसरे वे जिन्होंने प्रयोग से या स्वतः दुर्गंध को नहीं छोड़ा, दुर्गन्धपूर्ण ही हैं। इसी प्रकार जिन श्रोताओं ने मिथ्यात्व, विषय, कषाय के संस्कारों को छोड़ दिया है, वे श्रुतज्ञान के अधिकारी हैं, जिन्होंने कुसंस्कारों को नहीं छोड़ा, वे अनधिकारी हैं। *169
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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