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________________ मूलम्- कालिय-सुय-अणुओगस्स धारए, धारए य पुव्वाणं । . हिमवंत-खमासमणे, वंदे णागज्जुणायरिए ॥ ३९ ॥ छाया- कालिक-श्रुताऽनुयोगस्य धारकान्, धारकांश्च पूर्वाणाम्। हिमवंतः क्षमाश्रमणान्, वन्दे नागार्जुनाचार्यान् ॥ ३९ ॥ पदार्थ-पुनः, कालिय-सुय-अणुओगस्स-कालिक-श्रुत सम्बन्धी अनुयोग के, धारएधारक, य-और, पुव्वाणं-उत्पाद आदि पूर्वो के, धारए-धारण करने वाले, ऐसे, हिमवंत-खमासमणे-आचार्य हिमवान क्षमाश्रमण के सदृश, णागज्जुणायरिए-श्री नागार्जुन आचार्य को, वंदे-नमस्कार करता हूं। ___ भावार्थ-पुनः क्रमागत महापुरुषों की स्तुति करते हुए स्तुतिकार कहते हैं कि जो कालिक सूत्रों सम्बन्धी अनुयोग को धारण करने वाले थे और जो उत्पाद आदि पूर्षों के धर्ता थे, ऐसे विशिष्ट ज्ञानी हिमवन्त क्षमाश्रमण के सदृश श्रीनागार्जुनाचार्य को वन्दनं करता हूं। टीका-इस गाथा में आचार्यवर्य हिमवान के शिष्यरत्न, पूर्वधर श्रीसंघ के नेता आचार्य नागार्जुन का वर्णन है (27) आचार्य नागार्जुन स्वयं कालिक श्रुतानुयोग के धारक थे तथा उत्पाद आदि पूर्वो के भी धारक थे। वे हिमवंत गुरु या पर्वत के तुल्य क्षमावान 'श्रमण थे। अतः स्तुतिकार ने उन्हें वन्दना की है। कुछ एक प्रकाशित और लिखित प्रतियों में इसी गाथा में हिमवान क्षमाश्रमण और नागार्जुन आचार्य दोनों को वंदना की है। ऐसा लिखते हैं, परन्तु यह शैली हृदयंगम नहीं होती, क्योंकि आचार्य हिमवान को तो 38वीं गाथा में स्तुतिकार वंदना कर चुके हैं, पुनः उन्हीं को दूसरी गाथा में वन्दना करने का क्या अर्थ है ? इसका कोई उत्तर नहीं। __वास्तव में 'हिमवंतखमासमणे' यह विशेषण नागार्जुन का ही है, क्योंकि वे हिमवंत गुरु या हिमवन्त पर्वत के तुल्य क्षमाश्रमण थे। यहां लुप्त उपमा अलंकार है। गाथा में जो "पुव्वाणं" यह पद दिया है, वह आगम में सर्वनाम इतर के प्रकरण में आता है, जैसे कि “पूर्वाणाम्" "जैनागमप्रसिद्धपूर्वशब्दस्य सर्वनामेतरस्य रूपम्" अन्यथा पूर्वेषाम्" ऐसा रूप बनना चाहिए था। मूलम्- मिउ-मद्दव-सम्पन्ने, आणुपुट्वि-वायगत्तणं पत्ते । ओह-सुय-समायारे, नागज्जुणवायए वंदे ॥ ४० ॥ छाया- मृदु-मार्दव-सम्पन्नान्, आनुपूर्व्या वाचकत्वं प्राप्तान् । ' ओघ-श्रुत-समाचारान् (चारकान्), नागार्जुनवाचकान् वन्दे ॥४०॥ * 158 *
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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