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________________ उदाहरण अन्यत्र दृष्टिगत नहीं होता है। वे बत्तीसों आगमों के गंभीर ज्ञाता थे। वर्तमान में उपलब्ध समस्त आगमज्ञान उनकी प्रज्ञा में प्राणवन्त बन गया था। इससे भी आगे का सच यह है कि आगम ज्ञान के असाधारण ज्ञाता होने के साथ ही साथ आगमों के तथ्यों को उन्होंने अपने जीवन में सत्य रूप में साकार भी किया था। जहां वे आगम ज्ञान के इन्साइकलोपिडिया थे वहीं वे आचार और विचार में भी साधना के शिखर शैल-साधक थे। उनकी प्रज्ञा में आगम अवगाहित होते थे, वाणी में आगम आकार पाते थे और व्यवहार में आगम सुगम बनते थे। नि:संदेह वे पंचम काल के आगम-पुरूष थे। ___ आचार्य देव श्री आत्माराम जी महाराज ने अपना समग्र जीवन श्रुतसाधना में समर्पित किया था। अहर्निश उनका चिन्तन, मनन और संभाषण आगमों के साथ ही जुड़ा रहता था। उनकी सोच थी कि आगमों का ज्ञान जन-जन तक पहुंचे। उसके लिए उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन लगा दिया। उन्होंने कठिन श्रम के द्वारा अठारह आगमों पर विशाल व्याख्याएं लिखीं। विगत अढाई हजार वर्षों में आज तक आगम ज्ञान इतने सरल संस्करणों में उपलब्ध नहीं रहा जितने सरल संस्करणों में आचार्य देव ने प्रस्तुत किया। नि:संदेह यह किसी आश्चर्य से कम नहीं है। आचार्य देव के व्याख्यायित आगमों का स्वाध्याय कर जहां विज्ञ जन श्रुत सागर में गहरे और गहरे पैठते हैं वहीं अज्ञ पाठक भी आगम के दुरूह विषयों को सरलता से हृदयंगम कर लेते है। यही कारण है कि समग्र जैन जगत में जिस रूचि और उत्साह से आचार्य श्री के व्याख्यायित आगम पढ़े और पढ़ाए जाते हैं वैसी रूचि अन्य व्याख्याकृत आगमों में दृष्टिगोचर नहीं होती। आगमों की दुरूहता और पाठकों के मध्य आचार्य देव स्वयं सेतु बने हैं जो उनकी अनन्त करुणा का प्रतीक है। भारत के सुदूर अंचलों में विहार यात्रा करते हुए मैंने आचार्य श्री के व्याख्याकृत आगमों की मांग को निरन्तर अनुभव किया। भव्यजनों की आगमरूचि ने मुझे प्रेरित किया कि श्रुत के सरल संस्करण उन तक पहुंचाए जाएं। उसी प्रेरणा के फलस्वरूप आत्म-ज्ञान-श्रमण-शिव आगम प्रकाशन समिति का गठन हुआ और अढ़ाई वर्ष की अल्पावधि में ही आचार्य देव के व्याख्याकृत कई आगम सर्व सुलभ बने। श्रुत प्रभावना के इस महाभियान में मुझे समग्र जैन श्रीसंघ का योगदान प्राप्त हुआ है। तदर्थ समग्र संघ साधुवाद का सुपात्र है। _ विशेष रूप से इस दिशा में श्री शिरीष मुनि जी एवं साधक श्री शैलेश,जी का समर्पित सहयोग उल्लेखनीय रहा है। इनके अप्रमत्त श्रम ने इस विशाल कार्य को सुगम बना दिया है। इनके समुज्ज्वल भविष्य के लिए शत-शत शुभाशीष। ___ इनके अतिरिक्त वयोवृद्ध विद्वान पण्डित श्री ज. प. त्रिपाठी तथा कलमकलाधर श्री विनोद शर्मा का समर्पित श्रम भी इस श्रुतप्रभावना के साथ सतत जुड़ा रहा है। मूल पाठ पठन, प्रूफ पठन तथा सुन्दर प्रिंटिंग में इनका विशेष सहयोग रहा है। और अंत में श्रुत-प्रभावना के इस महाभियान पर तन-मन-कर्म से व्यक्त-अव्यक्त रूप से सहयोग देने वाले समस्त भव्यजनों को शत-शत साधुवाद। आचार्य शिवमुनि 21/3/2004 . 6
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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