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सम्पादकीय
जीवन में जो भी मूल्यवान से मूल्यवान तत्व है वह है आत्म-बोध। अक्सर हम बहुत कुछ जान लेते हैं, पर स्वयं के बारे में हमारा ज्ञान शून्य रहता है। आत्मबोध की शून्यता ही हमारे समस्त दुखों और भ्रमों व भ्रमणाओं का मूल कारण है। जब तक आत्मबोध का दीप हमारे आत्म-शिवालय में प्रज्ज्वलित नहीं होगा तब तक हमारे द्वारा अर्जित समस्त ज्ञान और की गई प्रलम्ब यात्राएं व्यर्थ सिद्ध होंगी।
आत्मबोध कैसे प्राप्त हो ? भगवान महावीर ने कहा-'आत्मा द्वारा आत्मा को जानो !' निश्चय नय की दृष्टि से यही अन्तिम सत्य है कि आत्मा ही ज्ञाता है और आत्मा ही ज्ञेय है। परन्तु प्रत्येक कार्य के पीछे कोई न कोई आधार अवश्य रहता है। तदनुसार आत्मबोध के लिए भी जिस आधार की आवश्यकता है, वह है आगम! वर्तमान समय में जब अर्हत्-जिन-केवली विद्यमान नहीं हैं तो उनकी वाणी ही व्यक्ति को आत्मबोध देने वाली है। वर्तमान विश्व इस दृष्टि से सौभाग्यशाली है कि उसके पास अर्हत्-वचनों की अमूल्य थाती सुरक्षित है। अर्हत्-वचन / आगम आध्यात्मिक विज्ञान के अमूल्य सूत्र हैं। उन सूत्रों के इंगितों के आधार पर आज भी मनुष्य अध्यात्म के परम
कल्याणकारी और सुखद रहस्यों से साक्षात्कार साध सकता है। - वर्तमान में उपलब्ध बतीस आगमों में श्री नन्दी सूत्रम् एक प्रमुख आगम है। चार मूल सूत्रों में श्री नन्दी सूत्रम् का तृतीय क्रम है। इस आगम में पांच ज्ञान का सूक्ष्म और विशद विश्लेषण हुआ है। ज्ञान और ज्ञान के अवयवों का ऐसा सूक्ष्म और सारगर्भित विश्लेषक ग्रन्थ विश्व में अन्य नहीं . है। इस आगम में मति, श्रुत, अवधि, मन:पर्यव और केवलज्ञान पर विभिन्न पहलूओं के साथ चिन्तन हुआ है। इस आगम के मनोयोग पूर्वक अध्ययन से अध्येता आत्मज्ञान के रहस्यों से सहज ही परिचय साध सकता है। इस के अध्ययन, मनन और पर्यवेक्षण से पाठक को ज्ञात होता है कि उसके लिए जो भी सत्य, शिव और सुन्दर है वह कहीं अन्यत्र नहीं बल्कि उसके अपने ही भीतर मौजूद है। यह बोध जगने के साथ ही व्यक्ति के जीवन का गुणधर्म रूपायित हो जाता है। संसार में रहकर और सांसारिक कार्य करते हुए भी वह संसार से मुक्त हो जाता है। हर्ष-शोक, हानि-लाभ जीवन और मृत्यु आदि प्रत्येक अवस्था में वह आनन्द में निमग्न रहता है। जीवन के द्वार पर मृत्यु की दस्तक भी उसके आनन्दमय अस्तित्व को विचलित नहीं कर पाती है।
- आत्मबोध को जागृत करना और आत्मानन्द से अनन्त-अनन्त के लिए एकरस हो जाना ही इस आगम की स्वाध्याय और अनुप्रेक्षा की अन्तिम निष्पत्ति है।
श्री नन्दी सूत्रम् में तीर्थंकर महावीर की अर्थरूप वाणी का संकलन है। इस आगम के अध्ययन से असंख्य-असंख्य भव्य जीवों ने आत्मकल्याण प्राप्त किया है। वैसा ही सुअंवसर हमारे समक्ष भी उपस्थित है। इसके अध्ययन-मनन से हम भी अपने जीवन-पथ के तमस को धोकर आत्मप्रकाश में प्रवेश ले सकते हैं, सहज स्फूर्त अव्यय, अक्षय और अनन्त आनन्द में विहार कर सकते हैं।
_ 'श्री नन्दीसूत्रम्' के व्याख्याकार जैन धर्म दिवाकर आचार्य सम्राट श्री आत्माराम जी महाराज हैं, जो स्वयं ज्ञान के दिव्य-देव पुरूष थे। अपने जीवन में ज्ञान की जैसी आराधना उन्होंने की वैसा