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नन्दीसूत्र पर मलयगिरि संस्कृत वृत्ति
आचार्य मलयगिरि भी अपने युग के अनुपम आचार्य हुए हैं। उन्होंने अनेक आगमों पर बृहद् वृत्तियां लिखीं, जैसे कि राजप्रश्नीय, जीवाभिगम, प्रज्ञापना, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति, आवश्यक, नन्दी इत्यादि आगमों पर महत्त्वपूर्ण दार्शनिक शैली से व्याख्याएं लिखीं। नन्दीसूत्र पर जो व्याख्या लिखी है, वह भी विशेष पठनीय है। आपकी अभिरुचि अधिकतर आगमों की ओर ही रही है। आप वृत्तिकार ही नहीं, भाष्यकार भी हुए हैं। आप जैन संस्कारों से सुसंस्कृत थे। आपने नन्दीसूत्र पर जो बृहत् वृत्ति लिखी है, उसका ग्रन्थाग्र 7732 श्लोक परिमाण है।
नन्दीसूत्र पर चन्द्रसूरिजी ने भी 3000 श्लोक परिमाण टिप्पणी लिखी है। यदि किसी जिज्ञासु ने नन्दीसूत्र के विषय को स्पष्ट रूपेण समझना हो, तो उसके लिए विशेषावश्यक भाष्य अधिक उपयोगी हैं। इसके रचयिता जिनभद्र गणी क्षमाश्रमण हुए हैं। उनका सम ईसवी सन् 609 का वर्ष निश्चित होता है। भाष्य प्राकृत गाथाओं में रचा गया है। गाथाओं की संख्या लगभग 3600 है। यह आगमों एवं दर्शनों की कुञ्जी है। इसे जैन सिद्धान्त का महाकोष यदि कहा जाए तो कोई अनुचित न होगा। इसमें नन्दी और अनुयोगद्वार दोनों सूत्रों का विस्तृत विवेचन है | "करेमि भन्ते ! सामाइयं" इस पाठ की व्याख्या को लेकर विषय प्रारंभ किया और इसी के साथ विशेषावश्यक भाष्य समाप्त हुआ। इसके अध्ययन करने से पूर्व आगमों: का, वृत्तियों का, वैदिकदर्शन, बौद्धदर्शन, चार्वाकदर्शन का परिज्ञान होना आवश्यकीय है। भाषा सुगम है और भाव गंभीर है।
प्रभा टीका
नन्दीसूत्र पर एक जैनेतर विद्वान ने संस्कृत विवृत्ति लिखी है, जिसका नाम प्रभा है। वस्तुत: यह वृत्ति मलयगिरि कृत विवृत्ति को स्पष्ट करने के लिए रची गई है। बीकानेर में ज्ञानभंडार के संस्थापक यतिवर्य्य हितवल्लभ की शुभ प्रेरणा से पं. जयदयालजी (जो कि संस्कृत प्रधान अध्यापक श्री दरबार हाई स्कूल बीकानेर ) ने लिखी वह 156 पन्नों में लिखित है। उसकी प्रैस कॉपी अगरचन्द नाहटाजी के भण्डार में निहित है। यह वृत्ति वि.सं. 1958 के वैशाख शुक्ला तृतीया में लिखी गई।
पूज्यपाद आचार्य प्रवर श्री आत्माराम जी म. ने प्रस्तुत नन्दीसूत्र की देवनागरी में विशद व्याख्या 20 वर्ष पूर्व लिखी थी, उस समय पूज्य श्री जी उपाध्यायपद को सुशोभित कर रहे थे। वि.सं. 2002 वैशाख शुक्ला त्रयोदशी को नन्दीसूत्र का लेखन कार्य पूर्ण किया। अभी तक नन्दीसूत्र पर जितनी हिन्दी टीकाएं उपलब्ध हैं, उन सब में यह व्याख्या विशद, सुगम, सुबोध एवं विस्तृत होने से अद्वितीय है। इन सब रचनाओं से नन्दीसूत्र की उपयोगिता स्वयंसिद्ध है।
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