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________________ श्रुतज्ञान का उल्लेख है। मैं समझता हूं कि श्रुत का प्रथम उल्लेख करने का यहां पर प्रयोजन केवल इतना ही है कि 'इन पांचों ज्ञानों में श्रुतज्ञान उपकारी होने की दृष्टि से प्रधान है' यह तथ्य स्पष्ट हो जाए। ज्ञान शब्द की व्युत्पत्ति है 'ज्ञायतेऽनेनेति ज्ञानम्'। यहां पर इतना ध्यान रहे कि ज्ञान के ये पांचों भेद क्षयोपशम भाव की विलक्षणता की अपेक्षा से माने गए हैं। अब ज्ञान और उसके सम्बन्धी ज्ञेय पदार्थों के विषय में कुछ और विशेष कहते हैं - एयं पंचविहं नाणं, दव्वाण य गुणाण य । पज्जवाणं च सव्वेसिं, नाणं नाणीहि दसियं ॥ ५ ॥ • एतत्पंचविधं ज्ञानं, द्रव्याणां च गुणानां च । पर्यायाणां च सर्वेषां, ज्ञानं ज्ञानिभिर्दर्शितम् ॥ ५ ॥ पदार्थान्वयः-एवं-यह अनन्तरोक्त, पंचविहं-पञ्चविध, नाणं-ज्ञान, दव्वाण-द्रव्यों का, य-और, गुणाण-गुणों का, य-तथा, सव्वेसिं-सर्व, पज्जवाणं-पर्यायों का, नाणं-ज्ञान, नाणीहि-ज्ञानियों ने, दंसियं-उपदेशित किया है, य-समुच्चयार्थक है। मूलार्थ-ज्ञानी पुरुषों ने द्रव्य, गुण और उनके समस्त पर्यायों के ज्ञानार्थ यह पूर्वोक्त पांच प्रकार का ज्ञान बताया है। टीका-प्रस्तुत गाथा में द्रव्य-गुण और पर्यायरूप ज्ञेय-तत्त्व में ज्ञान की उपयोगिता का दिग्दर्शन कराया गया है। पूर्वोक्त पांच प्रकार के ज्ञान का उपयोग द्रव्य, गुण और पर्यायों के जानने के लिए ही उक्त ज्ञानपञ्चक की आवश्यकता ज्ञानियों ने बताई है। एक ही पदार्थ की बदलती हुई अवस्थाओं को पर्याय कहते हैं एवं द्रव्य, गुण और पर्याय ये परस्पर एक दूसरे से भिन्न भी हैं और अभिन्न भी हैं। अब द्रव्य, गुण और पर्याय का लक्षण बताते हैं, यथा - गुणाणमासओ दव्वं, एगदव्वस्सिया गुणा। .. लक्खणं पन्जवाणं तु, उभओ अस्सिया भवे ॥ ६ ॥ गुणानामाश्रयो द्रव्यं, एकद्रव्याश्रिता गुणाः । . लक्षणं पर्यायाणां तु, उभयोराश्रिता भवन्ति ॥ ६ ॥ पदार्थान्वयः-गुणाणं-गुणों का, आसओ-आश्रय, दव्वं-द्रव्यं है, एगदव्वस्सिया-एक द्रव्य के आश्रित, गुणा-गुण हैं, उभओ अस्सिया-दोनों के आश्रित, भवे-होना यह, पज्जवाणं-पर्यायों का, लक्खणं-लक्षण है। ___ मूलार्थ-गुणों के आश्रय को द्रव्य कहते हैं तथा एक द्रव्य के आश्रित जो वर्ण-रस-गन्धादि तथा ज्ञानादि धर्म हों वे गुण हैं और द्रव्य तथा गुण इन दोनों के आश्रित होकर जो रहे, उसे पर्याय कहते हैं। . उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [७५] मोक्खमग्गगई अट्ठावीसइमं अज्झयणं
SR No.002204
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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