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________________ अब भंगों के अनुसार प्रतिलेखना की सदोषता और निर्दोषता का वर्णन करते हैं अणूणाइरित्तपडिलेहा, अविवच्चासा तहेव य । पढमं पयं पसत्थं, सेसाणि उ अप्पसत्थाई ॥ २८ ॥ अनूनाऽतिरिक्ता प्रतिलेखना, अविव्यत्यासा तथैव च । प्रथमं पदं प्रशस्तं, शेषाणि त्वप्रशस्तानि ॥ २८ ॥ .. पदार्थान्वयः-अणूणाइरित्त-न्यूनाधिकता से रहित, पडिलेहा-प्रतिलेखना, य-और, तहेव-उसी प्रकार, अविवच्चासा-विपर्यास अर्थात् विपरीत भी नहीं, पढम-प्रथम, पयं-पद, पसत्थं-प्रशस्त है, उ-और, सेसाणि-शेष पद, अप्पसत्थाइं-अप्रशस्त हैं। मूलार्थ-न्यूनाधिकता से रहित और विपर्यास अर्थात् वैपरीत्य से रहित इस प्रकार प्रतिलेखना के तीन पदों के साथ आठ भंग होते हैं, इनमें प्रथम पद तो प्रशस्त है और शेष पद अप्रशस्त हैं। टीका-प्रस्तुत गाथा में भंगों के द्वारा प्रतिलेखना की प्रशस्तता और अप्रशस्तता का वर्णन किया गया है। जैसे कि-सूत्र के अनुसार न्यून न हो, अतिरिक्त और विपरीत भी न हो, इन तीनों पदों-भंगों के संयोग से प्रतिलेखना के आठ भंग हो जाते हैं; सो इन आठ भंगों में से केवल प्रथम भंग शुद्ध है और शेष सभी भंग अशुद्ध हैं, अतः प्रथम भंग के अनुसार ही प्रतिलेखना करनी चाहिए। ... तात्पर्य यह है कि षट्पूर्वा, नवखोटक और नवप्रखोटक और एक दृष्टि, यह पच्चीस प्रकार की प्रतिलेखना पहले भंग के अनुसार की जाए तो प्रशस्त है और अन्य भंगों के अनुसार की जाए तो वह अप्रशस्त है। इसलिए विचारशील साधु को प्रमाद रहित होकर पहले भंग के अनुसार प्रशस्त प्रतिलेखना का ही आचरण करना चाहिए। भंगों की प्रशस्तता और अप्रशस्तता निम्नलिखित कोष्ठक से समझ लेनी चाहिए। यथा1. न्यून नहीं अतिरिक्त नहीं विपर्यास नहीं शुद्ध है-प्रशस्त है २. | न्यून नहीं अतिरिक्त नहीं । विपर्यास है अशुद्ध है-अप्रशस्त अतिरिक्त है विपर्यास नहीं है अशुद्ध है-अप्रशस्त ४. | न्यून है अतिरिक्त नहीं है विपर्यास नहीं है अशुद्ध है-अप्रशस्त ५. | न्यून नहीं अतिरिक्त है विपर्यास है अशुद्ध है-अप्रशस्त अतिरिक्त नहीं है| विपर्यास है अशुद्ध है-अप्रशस्त अतिरिक्त है विपर्यास नहीं अशुद्ध है-अप्रशस्त अतिरिक्त है विपर्यास है अशुद्ध है-अप्रशस्त ३. | न्यून है opotoo उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [४१] सामायारी छव्वीसइमं अज्झयणं
SR No.002204
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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