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________________ टीका-प्रस्तुत गाथा में विजयादि चारों अनुत्तर विमानों में रहने वाले देवों की आयु का वर्णन किया गया है। इन विमानों में रहने वाले सभी देव, एकान्त सम्यक्-दृष्टि होते हैं और अधिक से अधिक १५ भव लेकर मोक्ष में चले जाने वाले होते हैं। अब सर्वार्थसिद्धि के देवों की स्थिति का वर्णन करते हैं अजहन्नमणुक्कोसा, तेत्तीसं सागरोवमा । महाविमाणे सव्वळे, ठिई एसा वियाहिया ॥ २४३ ॥ . अजघन्याऽनुत्कृष्टा, त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमाणि । __ महाविमाने सर्वार्थे, स्थितिरेषा व्याख्याता ॥ २४३ ॥ पदार्थान्वयः-सव्वठे महाविमाणे-सर्वार्थसिद्धि महाविमान में, अजहन्नमणुक्कोसा-अजघन्य अनुत्कृष्ट, तेत्तीसं-तेंतीस, सागरोवमा-सागरोपम की, एसा-यह, ठिई-स्थिति-आयुमान, वियाहिया-प्रतिपादन की गई है। मलार्थ-सर्वार्थसिद्धि महाविमान में रहने वाले देवों की अजघन्य-अनुत्कृष्ट स्थिति ३३ सागरोपम की कथन की गई है। टीका-सर्वार्थसिद्धि विमान अर्थात् २६वें देवलोक में रहने वाले देवों की जघन्य और उत्कृष्ट आयु एक ही जैसी है। तात्पर्य यह है कि उनकी जघन्य और उत्कृष्ट आयु ३३ सागरोपम की है। इस स्वर्ग के देव शुद्ध अवधिज्ञान से युक्त हुए सर्व प्रधान सुखों का अनुभव करके फिर एक ही जन्म में अर्थात् एक ही भव करके मोक्ष जाने वाले होते हैं। - अब इनकी कायस्थिति के विषय में कहते हैं- . जा चेव उ आउठिई, देवाणं तु वियाहिया । सा तेसिं कायठिई, जहन्नुक्कोसिया भवे ॥२४४ ॥ य चैव तु आयुःस्थितिः, देवानान्तु व्याख्याता । सा तेषां कायस्थितिः, जघन्योत्कृष्टा भवेत् ॥ २४४ ॥ पदार्थान्वयः-देवाणं-देवों की, जा-जो, उ-पुनः, आउठिई-आयुस्थिति, वियाहिया-कथन की गई है, तु-पुनः, सा-वही, तेसिं-उनकी, कायठिई-कायस्थिति, जहन्नुक्कोसिया-जघन्य और उत्कृष्ट, भवे-होती है। ___मूलार्थ-देवों की जो जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति वर्णन की गई है वही उनकी जघन्य और उत्कृष्ट कायस्थिति होती है। टीका-इन देवों की जिस-जिस प्रकार की आयुस्थिति बतलाई गई है वही उनकी कायस्थिति समझ लेनी चाहिए। तात्पर्य यह है कि इनकी आयुस्थिति और कायस्थिति एक जैसी ही है, क्योंकि देवता मरकर फिर देवता नहीं होता, इसलिए आयुस्थिति के अतिरिक्त उनकी और किसी प्रकार की कायस्थिति नहीं होती। उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [४७३] जीवाजीवविभत्ती णाम छत्तीसइमं अन्झयणं
SR No.002204
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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