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. सागरा अट्ठवीसं तु, उक्कोसेण ठिई भवे । छट्ठम्मि जहन्नेणं, सागरा सत्तवीसई ॥ २३८ ॥ सागराण्यष्टाविंशतिस्तु, उत्कर्षेण स्थितिर्भवेत् ।
षष्ठे जघन्येन, सागराणि सप्तविंशतिः ॥ २३८ ॥ ___ पदार्थान्वयः-छट्ठम्मि-छठे ग्रैवेयक में, जहन्नेणं-जघन्य, ठिई-स्थिति, सत्तवीसई-सत्ताईस, सागरा-सागरोपम की, तु-और, उक्कोसेण-उत्कृष्ट, अट्ठवीसं-अट्ठाईस, सागरा-सागरोपम की, भवे-होती है।
मूलार्थ-छठे ग्रैवेयक में रहने वाले देवों की जघन्य स्थिति २७ सागर की और उत्कृष्ट स्थिति २८ सागर की होती है।
टीका-इस गाथा में द्वितीय त्रिक के तीसरे देवलोक अर्थात् अठारहवें देवलोक के देवों की आयु का वर्णन किया गया है। इस देवलोक के विमान केवल शुक्ल वर्ण के ही होते हैं। अब सातवें ग्रैवेयक के सम्बन्ध में कहते हैं
सागरा अउणतीसं तु, उक्कोसेण ठिई भवे । . सत्तमम्मि जहन्नेणं, सागरा अट्ठवीसई ॥ २३९ ॥
सागसण्येकोनत्रिंशत्तु, उत्कर्षेण स्थितिर्भवेत् ।
सप्तमे जघन्येन, सागराण्यष्टाविंशतिः ॥ २३९ ॥ पदार्थान्वयः-सत्तमम्मि-सातवें ग्रैवेयक में, जहन्नेणं-जघन्य, ठिई-स्थिति, अट्ठवीसई-अट्ठाईस, सागरा-सागरोपम की, तु-पुनः, उक्कोसेण-उत्कृष्ट स्थिति, अउणतीसं-ऊनतीस, सागरा-सागरोपम की, भवे-होती है।
मूलार्थ-सातवें ग्रैवेयक में निवास करने वाले देवों की जघन्य आयु २८ सागर की और उत्कृष्ट आयु २९ सागर की होती है।
टीका-तृतीय त्रिक के प्रथम अर्थात् सातवें ग्रैवेयक और उन्नीसवें देवलोक में रहने वाले देवों की आयु कम से कम २८ सागरोपम की और अधिक से अधिक २९ सागरोपम की मानी गई है। अब आठवें ग्रैवेयक के सम्बन्ध में कहते हैं, यथा
तीसं तु सागराइं, उक्कोसेण ठिई भवे । अट्ठमम्मि जहन्नेणं, सागरा अउणतीसई ॥ २४० ॥ त्रिंशत्तु सागराणि, उत्कर्षेण स्थितिर्भवेत् ।
अष्टमे जघन्येन, सागराणि एकोनत्रिंशत् ॥ २४० ॥ पदार्थान्वयः-अट्ठमम्मि-अष्टम ग्रैवेयक में, जहन्नेणं-जघन्य, ठिई-स्थिति, अउणतीसई-ऊनतीस, सागरा-सागरोपम की, तु-पुनः, उक्कोसेण-उत्कृष्ट स्थिति, तीसं-तीस, सागराइं-सागर की, भवेहोती है।
उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [ ४७१] जीवाजीवविभत्ती णाम छत्तीसइमं अज्झयणं