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(३) ज्योतिषी-जो तीनों लोक में प्रकाश करने वाले विमानों में निवास करते हैं उनको ज्योतिषी देव कहा जाता है। यहां पर इतना और भी स्मरण रहे कि जैसे 'ग्राम आ गया' इस वाक्य में आया हुआ ग्राम शब्द ग्रामनिवासी जनों का बोधक है, उसी प्रकार ज्योति वाले विमानों में निवास करने से उन देवों का नाम ज्योतिषी है।
(४) वैमानिक-जो विशेषरूप से माननीय हैं तथा किए हुए शुभ कर्मों के फल को विमानों में उत्पन्न होकर यथेच्छ भोगते हैं उन देवों का नाम वैमानिक है। अब इनके उत्तर भेदों का वर्णन करते है, यथा
दसहा उ भवणवासी, अट्ठहा वणचारिणो । पंचविहा जोइसिया, दुविहा वेमाणिया तहा ॥ २०४॥ दशधा तु भवनवासिनः, अष्टधा वनचारिणः ।
पञ्चविधा ज्योतिष्काः, द्विविधा वैमानिकास्तथा ॥ २०४ ॥ पदार्थान्वयः-दसहा उ-दश प्रकार के तो, भवणवासी-भवनवासी देव हैं, अट्ठहा-आठ प्रकार के, वणचारिणो-व्यन्तर देव हैं, तथा, पंचविहा-पांच प्रकार के, जोइसिया-ज्योतिषी देव हैं, तहा-तथा, दुविहा-दो प्रकार के, वेमाणिया-वैमानिक देव हैं।
मूलार्थ-दश प्रकार के भवनपति, आठ प्रकार के व्यन्तर, पांच प्रकार के ज्योतिषी और दो प्रकार के वैमानिक देव कहे गए हैं।
__टीका-भवनों में उत्पन्न होने वाले देवों की दश जातियां हैं; इसलिए दश ही प्रकार के भवनवासी कथन किए गए हैं। इसी प्रकार वनों में या विचित्र उपवनों में वा अन्य स्थानों में जो क्रीड़ा के रस में निमग्न हैं, उन्हीं का नाम वनचारी है। वे आठ प्रकार के माने गए हैं। ज्योतिरूप विमानों में उत्पन्न होने वाले ज्योतिषी देव पांच प्रकार के हैं एवं वैमानिकों के केवल दो ही भेद हैं। अब इनके नामों का निर्देश किया जाता है, यथा
असुरा नागसुवण्णा, विन्जू अग्गी य आहिया । दीवोदहिदिसा वाया, थणिया भवणवासिणो ॥ २०५ ॥
असुरा नागसुपर्णाः, विद्युदग्निश्च आख्याताः ।
द्वीपोदधिदिशो वायवः, स्तनिता भवनवासिनः ॥ २०५ ॥ पदार्थान्वयः-असुरा-असुरकुमार, नाग-नागकुमार, सुवण्णा-सुपर्णकुमार, विजू-विद्युत्कुमार, य-पुनः, अग्गी-अग्निकुमार, दीव-द्वीपकुमार, उदहि-उदधिकुमार, दिसा-दिक्कुमार, वाया-वायुकुमार, थणिया-स्तनितकुमार, भवणवासिणो-भवनवासियों के दश भेद हैं।
मूलार्थ-भवनपति-देवों की दश जातियां कथन की गई हैं-असुरकुमार, नागकुमार, सुपर्णकुमार, विद्युत्कुमार, अग्निकुमार, द्वीपकुमार, उदधिकुमार, दिक्कुमार, वायुकुमार और स्तनितकुमार।
या ।
उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [४५६] जीवाजीवविभत्ती णाम छत्तीसइमं अज्झयणं