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________________ अब जलचरों के भेद बताते हैं, यथा मच्छा य कच्छभा य, गाहा य मगरा तहा । सुंसुमारा य बोधव्वा, पंचहा जलयराहिया ॥ १७२ ॥ मत्स्याश्च कच्छपाश्च, ग्राहाश्च मकरास्तथा । सुंसुमाराश्च बोद्धव्याः, पञ्चधा जलचरा आख्याताः ॥ १७२ ॥ पदार्थान्वयः-मच्छा-मत्स्य, य-पुनः, कच्छभा-कच्छप-कछुए, य-पुनः, गाहा-ग्राह-तंदवा, तहा-तथा, मगरा-मगरमच्छ, य-और, सुंसुमारा-सुसुमार, बोधव्वा-जानना, पंचहा-पांच प्रकार के, जलयर-जलचर जीव, आहिया-कहे गए हैं। मूलार्थ-जलचर जीव पांच प्रकार के वर्णन किए गए हैं-मत्स्य, कच्छप, ग्राह, मगर और सुंसुमार। टीका-जल में रहने वाले जीवों के यद्यपि अनेक भेद हैं, तथापि उन सब का इन पांचों में ही समावेश हो जाता है। तात्पर्य यह है कि जलचर जीवों की मुख्य जातियां पांच ही हैं, अन्य सब का इन्हीं में अन्तर्भाव हो जाता है। अन्यत्र यह भी कहा गया है कि जितने स्थलचर जीव हैं उतने ही जलचर हैं। यहां पर चकार का प्रयोग समुच्चयार्थक है। अब इनकी क्षेत्र-स्थिति और चतुर्विध काल-विभाग का वर्णन करते हुए शास्त्रकार कहते हैं कि लोएगदेसे ते सव्वे, न सव्वत्थ वियाहिया । इत्तो कालविभागं तु, तेसिं वोच्छं चउव्विहं ॥ १७३ ॥ लोकैकदेशे ते सर्वे, न सर्वत्र व्याख्याताः । इतः कालविभागन्तु, तेषां वक्ष्यामि चतुर्विधम् ॥ १७३ ॥ पदार्थान्वयः-लोएगदेसे-लोक के एकदेश में, ते सव्वे-वे सब, वियाहिया-कथन किए गए हैं, न सव्वत्थ-सर्वत्र नहीं, इत्तो-इसके अनन्तर, तेसिं-उनके, चउव्विहं-चतुर्विध, कालविभागं-कालविभाग को, वोच्छं-कहूंगा। ___मूलार्थ-वे जलचर जीव, लोक के एकदेश में रहते हैं, सर्व लोक में नहीं। अब इसके अनन्तर मैं उन जीवों के चार प्रकार के काल-विभाग को कहूंगा। ____टीका-ऊपर बताए गए जलचर जीवों के क्षेत्र-विभाग का प्रस्तुत गाथा में वर्णन किया गया है। वे जलचर जीव सर्व-लोक-व्यापी नहीं, किन्तु लोक के क्षेत्रविशेष में ही रहते हैं। अवशिष्ट अर्ध गाथा में इनका काल-सापेक्ष विभाग बताया गया है। अब काल-विभाग का वर्णन करते हैं, यथा संतई पप्प णाईया, अपज्जवसियावि य । । ठिइं पडुच्च साईया, सपज्जवसियावि य ॥ १७४.॥ उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [ ४४० ] जीवाजीवविभत्ती णाम छत्तीसइमं अज्झयणं
SR No.002204
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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