SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 429
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ टीका-अपने शरीर को छोड़कर अन्यत्र गया हुआ वायु-काय का जीव वहां से च्यव कर यदि फिर अपनी उसी काया में वापिस आता है तो उसको वापिस आने में कम से कम तो अन्तर्मुहूर्त का समय लगता है और अधिक से अधिक अनन्तकाल का समय व्यतीत हो जाता है, इसी का नाम अन्तरकाल है। इस प्रकार वायुकाय की सादि-सान्तता प्रमाणित की गई है, अर्थात् आयुस्थिति, कायस्थिति और अन्तरकाल की अपेक्षा से वायुकाय को सादि और सान्त सिद्ध किया गया है। ___अब प्रस्तुत विषय का उपसंहार करते हुए वायुकाय के उत्तर भेदों के विषय में फिर प्रतिपादन करते हैं, यथा एएसिं वण्णओ चेव, गंधओ रसफासओ । संठाणादेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥ १२५ ॥ एतेषां वर्णतश्चैव, गन्धतो रसस्पर्शतः । . संस्थानादेशतो वाऽपि, विधानानि सहस्रशः ॥ १२५ ॥ पदार्थान्वयः-एएसिं-इन वायुकाय के जीवों के, वण्णओ-वर्ण से, च-और, गंधओ-गन्ध से, रसफासओ-रस और स्पर्श से, वा-अथवा, संठाणादेसओ-संस्थान के आदेश से, अवि-भी, सहस्ससो-हजारों, विहाणाई-भेद होते हैं। मूलार्थ-इन वायुकाय के जीवों के तारतम्य को लेकर वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थानादेश से हजारों अवान्तर भेद होते हैं। टीका-पूर्वोक्त वायुकाय के जीवों के यदि वर्ण, गन्ध, रस आदि के तारतम्य को लेकर भेद करें तो वे हजारों की संख्या में हो जाते हैं। तात्पर्य यह है कि तारतम्य से इनके लाखों भेद किए जा सकते हैं। यहां पर 'सहस्ससो-सहस्रशः' शब्द अनेक लाख अर्थ का बोधक माना गया है। उदार त्रस वर्णन इस प्रकार अग्नि और वायु रूप त्रसकाय का निरूपण करने के अनन्तर अब उदार त्रसों का वर्णन करते हैं, यथा- | उराला तसा जे उ, चउहा ते पकित्तिया । बेइंदिया तेइंदिया, चउरो पंचिंदिया चेव ॥ १२६ ॥ उदाराः नसा ये तु, चतुर्धा ते प्रकीर्तिताः । द्वीन्द्रियास्त्रीन्द्रियाः, चतुरिन्द्रियाः पञ्चेन्द्रियाश्चेव ॥ १२६ ॥ पदार्थान्वयः-जे-जो, उ-पुनः, उराला-उदार, तसा-त्रस हैं, ते-वे, चउहा-चार प्रकार के, पकित्तिया-कथन किए गए हैं, बेइंदिया-दो इन्द्रियों वाले, तेइंदिया-तीन इन्द्रियों वाले, चउरो-चार इन्द्रियों वाले, च-और, पंचिंदिया-पांच इन्द्रियों वाले, एव-निश्चय में है। मूलार्थ-उदार त्रस के चार भेद कहे गए हैं-द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय। टीका-इस गाथा में उदार-त्रस जीवों का वर्णन किया गया है। उदार-त्रस-दो, तीन, चार और पांच इन्द्रियों वाले जीवों का नाम है। यद्यपि त्रसकाय में अग्नि और वायु का भी ग्रहण किया गया है, उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [४२०] जीवाजीवविभत्ती णाम छत्तीसइमं अज्झयणं
SR No.002204
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy