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वनस्पति के जानने चाहिएं जो कि वर्णन किए गए हैं।
टीका-पूर्व गाथा में प्रत्येक वनस्पति के ६ भेदों का वर्णन किया जा चुका है। अब शेष ६ भेद इस गाथा में बताए गए हैं, जैसे कि - ७. वलय - नारिकेल - नारियल और कदली आदि को वलय कहते हैं, कारण यह है कि इनमें शाखान्तर नहीं होता किन्तु त्वचा का वलयाकार होने से ये वलय कहलाते हैं। ८. पर्वज-संधियों से उत्पन्न होने वाले ईख और बांस आदि को पर्वज कहते हैं । ९. कुहण - कु शब्द का अर्थ है पृथ्वी, उसको हण अर्थात् भेदन करके उत्पन्न होने वाले छत्राकार जैसे (खुंब आदि) कुहण कहलाते हैं। १०. जलरुह - जल से उत्पन्न होने वाले कमल आदि । ११. औषधि - तृण - पके हुए शाल्यादि धान्य। १२. हरितकाय - चुलाई आदि शाक का हरितकाय में समावेश है । इत्यादि अनेक भेद प्रत्येक वनस्पति के कथन किए गए हैं, जिसके मुख्य भेद ऊपर बता दिए गए हैं।
अब साधारण वनस्पतिकाय का वर्णन करते हैं, यथा
साहारणसरीरा उ णेगहा ते पकित्तिया । आलुए मूलए चेव, सिंगबेरे तहेव य ॥ ९६ ॥ साधारणशरीरास्तु, अनेकधा ते प्रकीर्तिताः । आलुको मूलकश्चैव, श्रृङ्गबेरं तथैव च ॥ ९६ ॥
पदार्थान्वयः-साहारणसरीरा - साधारण शरीर, उ-भी, णेगहा- अनेक प्रकार से, ते-वे, पकित्तिया-कथन किए गए हैं, आलुए-आलू, च- - और, मूलए-मूलक, तहेव - उसी प्रकार, सिंगबेरे-आर्द्रक अर्थात् अदरक, एव च - पादपूर्ति में
मूलार्थ - - साधारण शरीर का भी अनेक प्रकार से वर्णन किया गया है, यथा-आलुक अर्थात् आलू, मूलक अर्थात् मूली और श्रृंगबेर अर्थात् अदरक आदि ।
टीका - जहां पर एक शरीर में अनन्त जीव निवास करते हों उसे साधारण शरीर कहा जाता है। तात्पर्य यह है कि उन जीवों का श्वासोच्छ्वास और आहार आदि सर्व - साधारण होता है। साधारण वनस्पति के भी अनेक भेद हैं। इनमें आलू, मूली और अदरक आदि कन्द-मूल तो प्राय: प्रसिद्ध ही हैं, तथा अन्य कन्द-मूलादि के नाम भी देश-भेद से विभिन्न देश- भाषाओं से जान लेने चाहिएं। सारांश यह है कि जितने भी कन्द-मूल हैं वे सब के सब साधारण वनस्पति के अन्तर्गत आ जाते हैं। अब कतिपय कन्द-मूल के नामों का निर्देश करते हैं, यथा
हरिली सिरिली सिस्सिरिली, जावईकेय कंदली । पलंडुलसणकंदे य, कंदली य कुहुव्व ॥ ९७ ॥ लोहिणी हूयथी हूय, कुहगा य तहेव य । कण्हे य वज्जकंदे य, कंदे सूरणए तहा ॥ ९८ ॥ अस्सकण्णी य बोधव्वा, सीहकण्णी तहेव य । मुसुंढी यहलिद्दा य, णेगहा एवमायओ ॥ ९९
उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [ ४०६ ] जीवाजीवविभत्ती णाम छत्तीसइमं अज्झयणं