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अब पौरुषी के विषय में कहते हैं कि
आसाढे मासे दुपया, पोसे मासे चउप्पया । चित्तासोएसु मासेसु, तिप्पया हवइ पोरिसी ॥ १३ ॥
आषाढे मासे द्विपदा, पौषे मासे चतुष्पदा । ..
चैत्राश्विनयोर्मासयोः, त्रिपदा भवति पौरुषी ॥ १३ ॥ पदार्थान्वयः-आसाढे मासे-आषाढ़ मास में, दुपया-दो पाद से, पोसे मासे-पौष मास में, चउप्पया-चार पाद से, चित्तासोएसु-चैत्र और आश्विन, मासेसु-मास में, तिप्पया-तीन पाद से, पारिसी-पौरुषी, हवइ-होती है।।
मूलार्थ-आषाढ़ मास में दो पाद से, पौष मास में चार पाद से और चैत्र तथा आश्विन मासों में तीन पाद से पौरुषी होती है। ___टीका-प्रस्तुत गाथा में इस रहस्य का उद्घाटन किया गया है कि जिस पौरुषी में स्वाध्याय आदि क्रियाओं का विधान किया गया है, उस प्रथम पौरुषी के जानने की विधि क्या और किस प्रकार से है। सो अब उसकी विधि बतलाते हैं। यथा-अपना दक्षिण कर्ण सूर्य के सम्मुख करके और जानु के मध्य में तर्जनी अंगुली रख कर उस अंगुली की छाया को देखें; यदि वह छाया दो पाद प्रमाण आ जाए तब आषाढ़ी पूर्णिमा में एक पहर प्रमाण दिन आ जाता है, अर्थात् आषाढ़ पूर्णिमा में जब चौबीस अंगुल प्रमाण छाया तृण अथवा जानु पर अंगुली रखने से आ जाए, तब दिन का चतुर्थ भाग-एक पहर प्रमाण दिन आ जाता है। इसी क्रम से पौष मास में जब चार पाद प्रमाण अर्थात् अड़तालीस अंगुल प्रमाण छाया आ जाए, तब एक पहर होता है तथा चैत्र और आश्विन मास में तीन पाद प्रमाण-छत्तीस अंगुल प्रमाण छाया आने से एक पहर होता है। प्राचीन समय में राज्य-कर्मचारी लोग तो नालिका-जलमय-घटिका यंत्र के द्वारा समय का निर्णय किया करते थे और मुनि लोग अपनी निरवद्यवृत्ति के अनुसार उक्त प्रकार से पौरुषी आदि के समय का निर्णय किया करते थे। अब शेष मासों में पौरुषी के जानने का उल्लेख करते हैं, यथा- '
अंगुलं सत्तरत्तेण, पक्खेणं च दुरंगुलं । वढ्ढए हायए वावि, मासेणं चउरंगुलं ॥ १४ ॥ अगुलं सप्तरात्रेण, पक्षेण च द्वयंगुलम्।
वर्धते हीयते वापि, मासेन चतुरंगुलम् ॥ १४ ॥ पदार्थान्वयः-अंगुलं-एक अंगुल, सत्तरत्तेणं-सात अहोरात्र से, च-और, पक्खेणं-पक्ष से, दुरंगुलं-दो अंगुल, वा-अथवा, वढ्ढए-वृद्धि होती है-दक्षिणायन में, हायए-हीन होता है-उत्तरायण में, अवि-संभावना में, मासेण-मास से, चउरंगुलं-चार अंगुल प्रमाण।
मूलार्थ-सात अहोरात्र में एक अंगुल, पक्ष में दो अंगुल और मास में चार अंगुल प्रमाण
उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [२८] सामायारी छव्वीसइमं अज्झयणं