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________________ भाग अधिक, उक्कोसा-उत्कृष्ट स्थिति होती है। मूलार्थ-तेजोलेश्या की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की होती है और उत्कृष्ट स्थिति एक पल्योपम के असंख्यातवें भागसहित दो सागरोपम की होती है। टीका-भवनपति और व्यन्तर-देवों की अपेक्षा से तेजोलेश्या की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की प्रतिपादित की गई है और उत्कृष्ट स्थिति ईशान-देवलोक की अपेक्षा से पल्योपम के असंख्यातवें भाग-सहित दो सागर की कही गई है। कारण यह है कि इस लेश्या का सद्भाव ईशान-देवलोक-पर्यन्त ही बतलाया गया है। अब पद्मलेश्या के विषय में कहते हैं, यथा जा तेऊए ठिई खलु, उक्कोसा सा उ समयमब्भहिया । जहन्नेणं पम्हाए, दस उ मुहुत्ताहियाइ उक्कोसा ॥ ५४ ॥ या तेजोलेश्यायाः स्थिति खलु, उत्कृष्टा सा तु समयाभ्यधिका । जघन्येन पद्मायाः, दशसागरोपमा तु मुहूर्ताधिकोत्कृष्टा ॥ ५४॥ पदार्थान्वयः-जा-जो, तेऊए-तेजोलेश्या की, ठिई-स्थिति, उक्कोसा-उत्कृष्ट कही गई है, सा उ-वही, समयं-एक समय, अब्भहिया-अधिक, जहन्नेणं-जघन्य रूप से, पम्हाए-पद्मलेश्या की स्थिति होती है, उक्कोसा-उत्कृष्ट स्थिति, मुहुत्ताहियाइ-अन्तर्मुहूर्त्त अधिक, दस-दस सागरोपम की होती है, खलु-वाक्यालंकार में, उ-पादपूर्ति में है। ___मूलार्थ-यावन्मात्र उत्कृष्ट स्थिति तेजोलेश्या की है, वही एक समय अधिक पद्मलेश्या की जघन्य स्थिति है तथा पद्मलेश्या की उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त अधिक दस सागरोपम की होती है। टीका-पद्मलेश्या की यह जघन्य स्थिति सनत्कुमार-देवलोक की अपेक्षा से वर्णन की गई है और उत्कृष्ट स्थिति ब्रह्मदेवलोक की अपेक्षा से प्रतिपादन की गई है। अब शुक्ललेश्या के विषय में कहते हैं, यथा जा पम्हाए ठिई खलु, उक्कोसा सा उ समयमन्भहिया । जहन्नेणं सुक्काए, तेत्तीस मुहुत्तमब्भहिया ॥ ५५ ॥ या पद्मायाः स्थितिः खलु, उत्कृष्टा सा तु समयाभ्यधिका । जघन्येन शुक्लायाः, त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमा मुहूर्ताभ्यधिका ॥ ५५ ॥ पदार्थान्वयः-जा-जो, पम्हाए-पद्मलेश्या की, ठिई-स्थिति, खलु-वाक्यालंकार में, उक्कोसा-उत्कृष्ट कही है, सा उ-वही, समयं-एक समय, अब्भहिया-अधिक, जहन्नेणं-जघन्यरूप उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [३३७] लेसज्झयणं णाम चोत्तीसइमं अज्झयणं
SR No.002204
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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