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अर्थात् लम्पट, य-और, पओसे- प्रद्वेष करने वाला, सढे - शठ-असत्यभाषी, पमत्ते - प्रमादी, रसलोलुए-रसों का लोलुपी, य-और, सायगवेसए - सुख की गवेषणा करने वाला, आरंभाओ-आरम्भ से, अविरओ - अनिवृत्त, खुद्दो - क्षुद्र, साहस्सिओ - साहसी, नरो व्यक्ति, एय-इन, जोग-योगों से, समाउत्तो- समायुक्त, नीललेसं - नीललेश्या के, परिणमे - परिणाम वाला होता है, तु-प्राग्वत् ।
मूलार्थ - नीललेश्या के परिणाम वाला व्यक्ति ईर्ष्यालु, कदाग्रही, असहिष्णु, अतपस्वी, अविद्वान् अर्थात् अज्ञानी, मायावी, निर्लज्ज, विषयी अर्थात् लम्पट, द्वेषी, रस-लोलुपी, शठ - धूर्त, प्रमादी, स्वार्थी, आरम्भी, क्षुद्र और साहसी होता है।
टीका- यहां पर 'इस्सा अमरिस - ईर्ष्या और अमर्ष आदि पदों में 'मतुप्' प्रत्यय का 'लुक्' किया हुआ है, इसलिए ईर्ष्या का अर्थ ईर्ष्यायुक्त - ईर्ष्यालु तथा अमर्ष का अर्थ अमर्ष वाला अर्थात् असहिष्णु है। इसी प्रकार माया आदि अन्य शब्दों का अर्थ भी समझ लेना चाहिए। तात्पर्य यह है कि जो पुरुष इन उक्त लक्षणों से युक्त है उसमें नीललेश्या की परिणति होती है, अथवा यह कहें कि नीललेश्या वाला पुरुष उक्त लक्षणों से लक्षित होता है, अर्थात् उसमें पूर्वोक्त ईर्ष्या - अमर्षादि दोष विद्यमान होते हैं। इसके अतिरिक्त गाथाद्वय में आए हुए ईर्ष्यादि शब्दों का अर्थ प्रायः स्पष्ट ही है। अब कापोतलेश्या के लक्षणों का वर्णन करते हैं, यथा
वंके वंकुसमायारे, नियडिल्ले अणुज्जु । पलिउंचंग ओवहिए, मिच्छदिट्ठी अणारिए ।। २५ ।। उप्फालगट्ठवाई य, तेणे यावि य मच्छरी । एयजोगसमाउत्तो, काऊलेसं तु परिणमे ॥ २६ ॥
वक्रो वक्रसमाचारः, निष्कृतिमाननृजुकः । परिकुञ्चक औषधिकः, मिथ्यादृष्टिरनार्यः ॥ २५ ॥ उत्प्रासकदुष्टवादी च, स्तेनश्चापि च मत्सरी ।
एतद्योगसमायुक्तः, कापोतलेश्यां तु परिणमेत् ॥ २६ ॥
पदार्थान्वयः - बंके - वचन से वक्र, वंकसमायारे-वक्र ही क्रिया करने वाला, नियडिल्ले - छल करने वाला, अणुज्जुए-सरलता से रहित, पलिउंचग- अपने दोषों को ढांपने वाला, ओवहिए - परिग्रही, मिच्छदिट्ठी - मिथ्यादृष्टि, य-और, अणारिए - अनार्य, उप्फालग - मर्मभेदक, य-और, दुट्ठवाई - दुष्ट वचन बोलने वाला, तेणे-चोरी करने वाला, मच्छरी - मत्सरी - पराई सम्पत्ति को सहन न करने वाला, एय-इन, जोगसमाउत्तो-योगों से युक्त जीव, काऊलेसं - कापोतलेश्या के परिणमे - परिणाम वाला होता है, अवि य - यह पादपूर्ति में हैं ।
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मूलार्थ - जो व्यक्ति वक्र बोलता है, वक्र आचरण करता है, छल करने वाला है, निजी दोषों को ढांपता है, सरलता से रहित है, मिथ्यादृष्टि तथा अनार्य है, इसी प्रकार पर के मर्मों
उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [ ३२१] लेसज्झयणं णाम चोत्तीसइमं अज्झयणं