________________
बहुत से निर्ग्रन्थ, इस संसार-सागर से पार हो गए हैं। उपलक्षण से वर्तमान और भविष्यत् का भी ग्रहण कर लेना चाहिए, अर्थात् वर्तमान काल में बहुत से पार हो रहे हैं तथा आगामी काल में पार होंगे, अतएव यह सामाचारी प्रत्येक मुमुक्षु आत्मा के लिए आचरण करने योग्य है। ___ साधुओं की अवश्य करणीय क्रियाओं को सामाचारी कहते हैं। 'प्रवक्ष्यामि' यह भविष्यत् काल की क्रिया अपनी असमर्थता प्रकट करने के लिए प्रयुक्त की गई है। तात्पर्य यह है कि शास्त्रकार कहते हैं कि मैं इसके कथन करने की चेष्टा करूंगा, परन्तु मुझ में इतनी शक्ति नहीं है कि मैं इसको सम्पूर्ण रूप से वर्णन कर सकू। अब सामाचारी की संख्या और भेदों का वर्णन करते हैं - .
पढमा आवस्सिया नाम, बिइया य निसीहिया। आपुच्छणा य तइया, चउत्थी पडिपुच्छणा ॥ २ ॥ पंचमी छन्दणा नाम, इच्छाकारो य छट्ठओ । . सत्तमो मिच्छाकारो उ, तहक्कारो य अट्ठमो ॥ ३॥ अब्भुट्ठाणं च नवमं, दसमी उपसंपदा । एसा दसंगा साहूणं, सामायारी पवेइया ॥ ४ ॥
प्रथमाऽऽवश्यकी नाम्नी, द्वितीया च नैषेधिकी। आप्रच्छना च तृतीया, चतुर्थी प्रतिप्रच्छना ॥ २ ॥ पंचमी छन्दना नाम्नी, इच्छाकारश्च षष्ठी। सप्तमी मिथ्याकारस्तु, तथाकारश्चाष्टमी ॥ ३ ॥ अभ्युत्थानं च नवमी, दशमी उपसंपद्। .
एषा दशांगा साधूनां, सामाचारी प्रवेदिता ॥ ४ ॥ पदार्थान्वयः-पढमा-प्रथमा, आवस्सिया-आवश्यकी, नाम-नाम वाली है, बिइया-द्वितीया, निसीहिया-नैषेधिकी है, य-तथा, तइया-तीसरी, आपुच्छणा-आप्रच्छना और, चउत्थी-चतुर्थी, पडिपुच्छणा-प्रतिप्रच्छना है।
पंचमी-पांचवीं, छन्दणा-छन्दना, नाम-नाम वाली है, य-और, इच्छाकारो-इच्छाकार, छट्ठओ-छठी है, य-तथा, सत्तमी-सातवीं, मिच्छाकारो-मिथ्याकार है, उ-और, तहक्कारो-तथाकार, अट्ठमो-आठवीं सामाचारी है।
अब्भुट्ठाणं-अभ्युत्थान करना, नवम-नवमी, च-और, उपसंपदा-उपसम्पदा, दसमी-दसवीं सामाचारी है, एसा-यह, दसंगा-दश अवयवरूप, साहूणं-साधुओं की, सामायारी-सामाचारी, पवेइया-प्रतिपादन की है।
मूलार्थ-प्रथमा आवश्यकी, द्वितीया नैषेधिकी, तृतीया आप्रच्छना और चौथी प्रतिप्रच्छना
उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [२०] सामायारी छव्वीसइमं अज्झयणं ।