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पदार्थान्तयः-एगंतरत्ते-एकान्त रक्त, रुइरे-रुचिर, रसम्मि-रस में, से-वह, अतालिसे-अमनोहर रस में, पओसं-प्रद्वेष को, कुणई-करता है, दुक्खस्स-दुःख-सम्बन्धी, संपीलं-पीड़ा को, उवेइ-प्राप्त होता है, बाले-अज्ञानी, तेण-उस पीड़ा से, विरागो-विरक्त, मुणी-मुनि, न लिप्पई-लिप्त नहीं होता। ___मूलार्थ-जो जीव मनोहर रसों में अत्यन्त आसक्त होता है और अमनोहर रसों में अत्यन्त द्वेष रखता है, वह अज्ञानी जीव दुःखों एवं बाधाओं से अत्यन्त पीड़ित होता है, किन्तु रसों से विरक्त मुनि दुःखों बाधाओं से लिप्त नहीं होता, अर्थात् उसको दुःखों का सम्पर्क प्राप्त नहीं हो पाता।
टीका-इस गाथा के भाव को भी पूर्व गाथाओं के भाव के समान ही समझ लेना चाहिए। अब राग से उत्पन्न होने वाले अन्य अनर्थों का वर्णन करते हैं, यथा- .. रसाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरे हिंसइ णेगरूवें । चित्तेहि ते परितावेइ बाले, पीलेइ अत्तट्ठगुरू किलिट्ठे ॥ ६६ ॥ - रसानुगाशानुगतश्च जीवः, चराचरान्हिनस्त्यनेकरूपान् । . चित्रैस्तान् परितापयति बालः, पीडयत्यात्मार्थगुरुः क्लिष्टः ॥ ६६ ॥.
पदार्थान्वय-रसाणुगासाणुगए-रस की आशा के पीछे भागता हुआ, जीव-जीव, अणेगरूवे-अनेक जाति के, चराचरे-जंगम और स्थावर प्राणियों की, हिंसइ-हिंसा करता है तथा, चित्तेहि-नानाविध शस्त्रों से, ते-उन जीवों को, परितावेइ-परिताप पहुंचाता है, पीलेइ-पीड़ा देता है, बाले-अज्ञानी जीव, अत्तट्ठगुरू-स्वार्थ-परायण, किलिट्टे-क्लेश पाता हुआ।
मूलार्थ-राग के वशीभूत हुआ स्वार्थ-परायण अज्ञानी जीव रस की आशा के पीछे भागता हुआ और क्लेश पाता हुआ अनेक प्रकार के जंगम और स्थावर जीवों की हिंसा करने में प्रवृत्त हो जाता है तथा नाना प्रकार के शस्त्रों से उनको परिताप देता है और पीड़ा पहुंचाता है।
टीका-इस गाथा में रसों में अत्यन्त मूर्छित हुआ अज्ञानी जीव अपना कितना अहित करता है, इस बात का दिग्दर्शन भली-भांति करा दिया गया है, वस्तुत: हिंसा का कारण रस-लोलुपता ही है। रस-लोलुप लोग ही अनेक जीवों को मारकर उनके मांस को खाते हैं। पेट भरने के लिए फल-अन्न आदि खाना तो जीवन के लिए अनिवार्य है, परन्तु मांसाशन केवल जीभ की आस्वाद-आसक्ति ही मानी जाती है। अन्य व्याख्या पूर्व की भांति जान लेनी चाहिए।
अब फिर कहते हैं - रसाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसंनिओगे । । वए विओगे य कहं सुहं से, संभोगकाले य अतित्तलाभे ॥ ६७ ॥
उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [ २५८] पमायट्ठाणं बत्तीसइमं अज्झयणं