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________________ का दमन करने वालों के, रागसत्तू-रागरूप शत्रु, चित्तं-चित्त को, न धरिसेइ-धर्षित नहीं करता, ओसहेहिं-औषधियों से, वाहि-व्याधि, इव-जैसे, पराइओ-पराजित हुई। ___मूलार्थ-जैसे उत्तम औषधियों से पराजित हुई व्याधि पुनः आक्रमण नहीं करती, उसी प्रकार एकान्त और शुद्ध वसती में रहने वाले, अल्पाहारी और इन्द्रियों का दमन करने वाले पुरुषों के चित्त को यह रागरूप शत्रु धर्षित नहीं कर सकता। टीका-रागरूप शत्रु का किन पुरुषों पर आक्रमण नहीं होता, प्रस्तुत गाथा में दृष्टान्त के द्वारा इसी भाव को व्यक्त किया है। जिन महापुरुषों ने स्त्री, पशु और नपुंसक आदि से रहित निर्दोष स्थान का सेवन किया है, जो सदा अल्प आहार करने वाले हैं और जिन्होंने अपनी इन्द्रियों पर काबू पा लिया है, ऐसे महात्मा जनों पर इस रागरूप शत्रु का आक्रमण नहीं होता अर्थात् ऐसे पुरुषों का यह पराभव नहीं कर सकता। इस विषय को दृष्टान्त के द्वारा और भी स्पष्ट कर दिया गया है। अर्थात् जैसे उत्तम औषधियों के उपयोग से पराजित हुआ रोग फिर से आक्रमण नहीं करता, इसी प्रकार उक्त रीति से संयमरूप औषधि के सेवन से रागरूप शत्रु भी पराजित होता हुआ फिर से आक्रमण करने की शक्ति नहीं रखता। सारांश यह है कि एकान्त शयन, एकान्त आसन, स्वल्पाहार और इन्द्रियों के दमन से पराजित हुए ये रागादि दोष इस आत्मा को कुछ भी हानि नहीं पहुंचा सकते। यहां पर गाथा में अर्थरूप से दिया गया 'नियंत्रित' शब्द साधु को नियमबद्ध रहने की सूचना करता है। ___ जो साधु इन पूर्वोक्त नियमों का यथाविधि पालन नहीं करते, उनको क्या दोष होता है, अब इस विषय में कहते हैं- . . जहा बिरालावसहस्स मूले, न मूसगाणं वसही पसत्था । एमेव इत्थीनिलयस्स मज्झे, न बंभयारिस्स खमो निवासो ॥ १३ ॥ यथा बिडालावसथस्य मूले, न मूषकाणां वसतिः प्रशस्ता । एवमेव स्त्रीनिलयस्य मध्ये, न ब्रह्मचारिणः क्षमो निवासः ॥ १३ ॥ पदार्थान्वयः-जहा-जैसे, बिरालावसहस्स-बिडाल-बस्ती के, मूले-समीप में, मूसगाणं-मूषकों की, बसही-वसती, न पसत्था-प्रशस्त नहीं है, एमेव-इसी प्रकार, इत्थीनिलयस्स-स्त्री के निवास के, मज्झे-मध्य में, बंभयारिस्स-ब्रह्मचारी का, निवासो-निवास, न खमो-युक्त नहीं। मूलार्थ-जैसे बिल्लियों के स्थान के पास मूषकों (चूहों) का रहना प्रशस्त-योग्य नहीं, उसी प्रकार स्त्रियों के स्थान के समीप ब्रह्मचारी को निवास करना उचित नहीं है। ___टीका-जैसे बिडाल-बिल्ला-मार्जार के समीप रहने से मूषकों को हानि पहुंचने की संभावना होती है, उसी प्रकार स्त्रियों की वसती में रहने से ब्रह्मचारी को भी हानि पहुंचने की संभावना रहती है, इसलिए उसका वहां पर रहना ठीक नहीं। स्त्रियों के साथ परस्पर के संभाषण और मिलाप में उसके ब्रह्मचर्य में दोष लगने की हर समय शंका बनी रहती है तथा अल्पसत्त्व वाले जीव के पतित होने की अधिक संभावना रहती है, अतः ब्रह्मचर्य की रक्षा में सावधान रहने वाला साधु इनके संसर्ग में आने उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [ २२५] पमायट्ठाणं बत्तीसइमं अज्झयणं
SR No.002204
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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