________________
टीका - प्रस्तुत अध्ययन की पूर्वोक्त बीस गाथाओं में चारित्रशुद्धि के प्रकारों का वर्णन किया गया है। जो भिक्षु उक्त चारित्रविधि का अनुसरण करता है, वह पंडित अर्थात् सत्-असत् वस्तु का विचार करने वाला इस संसार से शीघ्र ही छूट जाता है, अर्थात् मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। अतः मोक्षाभिलाषी भव्य जीवों को उचित है कि वे उक्त चारित्रविधि के अनुष्ठान द्वारा इस आत्मा को कर्मबन्धन से मुक्त कराने का अवश्य प्रयत्न करें।
इसके अतिरिक्त 'त्ति बेमि' का अर्थ पूर्ववत् ही जान लेना चाहिए। यह चरणविधिनामक ३१वां अध्ययन समाप्त हुआ।
एकत्रिंशत्तममध्ययनं संपूर्णम्
नोट- प्रथम अंक से लेकर ३३ अंक पर्यन्त जिन विधानों का उल्लेख किया है, उनका पूर्ण विवरण समवायांगसूत्र से जान लेना।
उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [२१५] चरणविही णाम एगतीसइमं अज्झयणं