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________________ यह ऊनोदरी तप, कर्म निर्जरा का हेतु होने के अतिरिक्त लौकिक दृष्टि से भी बड़े महत्व का है। कम आहार करने से. उदर-सम्बन्धी अनेक प्रकार के रोगों की शांति होती है, चित्त भी प्रसन्न रहता है, आलस्य का भी आक्रमण नहीं होता, इसलिए मानसिक वृत्ति में भी विकास और निर्मलता का संचार होता है। अब प्रथम द्रव्य-सम्बन्धी भेद का वर्णन करते हैं - जो जस्स उ आहारो, तत्तो ओमं तु जो करे । जहन्नेणेगसित्थाई, एवं दव्वेण उ भवे ॥ १५ ॥ यो यस्य त्वाहारः, ततोऽवमं तु यः कुर्यात् । जघन्येनैकसिक्थकम्, एवं द्रव्येण तु भवेत् ॥ १५ ॥ पदार्थान्वयः-जो-जो-जितना, जस्स-जिसका, आहारो-आहार है, तत्तो-उससे, ओमं-न्यून, करे-करे, जहन्नेण-जघन्य से-न्यून से न्यून, एगसित्थाई-एक सिक्थिक-एक कवल, एवं-इस प्रकार, दव्वेण-द्रव्य से (ऊनोदरी-तप), भवे-होता है (उ, तु) पदपूर्ति में आया हुआ है। ___ मूलार्थ-जिसका जितना आहार है, उसमें कम से कम एक कवल न्यून करना-कम खाना, द्रव्य-ऊनोदरी-तप कहलाता है। टीका-शास्त्रों में पुरुष का ३२ कवल-प्रमाण और स्त्री का २८ कवल-(ग्रास) प्रमाण आहार कहा गया है तथा २४ कवल-प्रमाण आहार नपुंसक का माना गया है। इस प्रमाण से कम खाना ऊनोदर-तप है। . - इसके अतिरिक्त आगमों में लिखा है कि जो साधक एक ग्रास से लेकर आठ ग्रास-पर्यन्त आहार करे वह अल्पाहारी कहा जाता है। नौ से लेकर बारह ग्रास तक आहार करने वाला अपार्द्ध कहलाता है। एवं जो १६ तक करे उसको दो भाग ऊनोदर-तप करने वाला कहते हैं तथा २४ कवल आहार करना पादोन-ऊनोदरी-तप है और ३१ कवल तक आहार करना किंचित्मात्र ऊनोदरी-तप है। तात्पर्य यह है कि जो ३२ ग्रास में से एक ग्रास कम लेता है उसको प्रमाण से अधिक आहार वाला नहीं कहा जाता, किन्तु वह न्यूनतम ऊनोदर-तप का आचरण करने वाला माना जाता है। यदि संक्षेप से कहें तो प्रमाण से कम आहार करना ऊनोदरी-तप है। अब क्षेत्र-सम्बन्धी ऊनोदरी-तप का वर्णन करते हैं, यथा - गामे नगरे तह रायहाणि-, निगमे य आगरे पल्ली । . खेडे कब्बड-दोणमुह-, पट्टण-मडंब-संबाहे ॥ १६ ॥ आसमपए विहारे, संनिवेसे समाय-घोसे । थलि-सेणा-खंधारे, सत्थे संवट्ट-कोट्टे य ॥ १७ ॥ वाडेसु व रत्थासु व, घरेसु वा एवमित्तियं खेत्तं । उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [१८१] तवमग्गं तीसइमं अज्झयणं
SR No.002204
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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