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________________ टीका-शरीर शब्द यहां पर औदारिकादि शरीरों का बोधक है, अर्थात् औदारिकादि शरीरों के परित्याग से इस जीव को किस फल की प्राप्ति होती है? इस प्रश्न के उत्तर में कहा गया है कि शरीर के परित्याग से सिद्धों के अतिशय-परमोत्कृष्ट गुणभावों को प्राप्त करके यह जीवात्मा लोक के अग्रभाग अर्थात् मोक्ष होते ही परमसुख को प्राप्त हो जाता है। तात्पर्य यह है कि ऐसा जीव सर्व प्रकार के कर्मबन्धनों से मुक्त होकर सिद्ध, बुद्ध, अजर और अमर पद को प्राप्त करता हुआ अनन्तशक्तिसंपन्न होकर परमसुखी हो जाता है। अब सहाय-प्रत्याख्यान के सम्बन्ध में कहते हैं - सहायपच्चक्खाणेणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? सहायपच्चक्खाणेणं एगीभावं जणयइ। एगीभावभूए वि य णं जीवे एगत्तं भावेमाणे अप्पसद्दे, अप्पझंझे, अप्पकलहे, अप्पकसाए, अप्पतुमंतुमे, संजमबहुले, संवरबहुले, समाहिए यावि भवइ ॥ ३९ ॥ सहायप्रत्याख्यानेन भदन्त ! जीवः किं जनयति ? सहायप्रत्याख्यानेनैकीभावं जनयति। एकीभावभूतोऽपि च जीव एकत्वं भावयन्नल्पशब्दाऽल्पाञ्झोऽल्पकलहोऽल्पकषायोऽल्पत्वंत्वः, संयमबहुलः, संवरबहुलः, समाधिबहुलः, समाहितश्चापि भवति ॥ ३९ ॥ . पदार्थान्वयः-भंते-हे भगवन्, सहायपच्चक्खाणेणं-सहायक के प्रत्याख्यान से, जीव-जीव, किं जणयइ-किस गुण को प्राप्त करता है, सहायपच्चक्खाणेणं-सहायक के प्रत्याख्यान से, एगीभावं-एकत्वभाव को, जणयइ-प्राप्त करता है, य-फिर, एगीभावभूए-एकत्वभाव को प्राप्त हुआ, जीवे-जीव, एगत्तं-एकाग्रता की, भावेमाणे-भावना करता हुआ, अप्पसद्दे-अल्पशब्द वाला, अप्पझंझे-वचन-कलह से रहित, अप्पकलहे-अल्पक्लेश वाला, अप्पकसाए-अल्पकषाय वाला, अप्पतुमंतुमे-अल्प तूं तूं वाला-किंतु, संजमबहुले-प्रधानसंयमवान्, संवरबहुले-विशिष्टसंवरवान्, च-और, समाहिए-समाधियुक्त, यावि-ही, भवइ-होता है। ____ मूलार्थ-प्रश्न-हे भगवन् ! सहायक का प्रत्याख्यान करने से जीव किस गुण को प्राप्त करता है? उत्तर-सहायक के प्रत्याख्यान से जीव एकत्व भाव को प्राप्त होता है और एकत्वभाव को प्राप्त हुआ जीव एकाग्रता की भावना करता हुआ अल्पशब्द, अल्पझंझ अर्थात् अल्प-वाक्-कलह, अल्प-कलह, अल्प-कषाय और ज्ञानादि समाधि से युक्त होता है। टीका-शिष्य कहता है कि-"हे भगवन् ! जिस साधु ने अपनी दैनिकचर्या में वा अपनी नियत क्रियाओं में अन्य यतियों की सहायता का परित्याग कर दिया है, अर्थात् 'मैं अपनी किसी भी क्रिया में किसी अन्य यति की सहायता ग्रहण नहीं करूंगा'-ऐसी प्रतिज्ञा करने वाला साधु किस गुण को प्राप्त करता है? गुरु कहते हैं कि हे शिष्य ! सहायक के प्रत्याख्यान से यह जीव एकत्वभाव को प्राप्त कर उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [ १३८] सम्मत्तपरक्कम एगूणतीसइमं अज्झयणं
SR No.002204
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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