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________________ ६६६ ] उत्तराध्ययनसूत्रम् [ षोडशाध्ययनम् तं जहा-विवित्ताई सयणासणाई सेवित्ता हवइ से निग्गन्थे । नो इत्थीपसुपण्डगसंसत्ताई सयणासणाई सेवित्ता हवइ से निग्गन्थे।तं कहमिति चे? आयरियाहनिग्गन्थस्स खलु इत्थीपसुपण्डगसंसत्ताई सयणासणाई सेवमाणस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेदंवालभेज्जा, उस्मायंवा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओधम्माओवा भंसेज्जा, तम्हा नो इत्थीपसुपण्डगसंसत्ताई सयणासणाई सेवित्ता हवइ से निग्गन्थे ॥१॥ ... तद्यथा-विविक्तानि शयनासनानि सेविता भवति स निम्रन्थः । न स्त्रीपशुपण्डकसंसक्तानि शयनासनानि सेविता भवति स निर्ग्रन्थः। तत्कथमिति चेत् ? आचार्य आह-निर्ग्रन्थस्य खल्लु स्त्रीपशुपण्डकसंसक्तानि शयनासनानि सेवमानस्य ब्रह्मचारिणो ब्रह्मचर्ये शंका वा कांक्षा वा विचिकित्सा वा समुत्पद्येत, भेदं वा लभेत, उन्मादं वा प्राप्नुयात्, दीर्घकालिको वा रोगातङ्को भवेत् , केवलिप्रज्ञप्ताद् धर्माद् भ्रश्येत्, तस्मान्नो स्त्रीपशुपण्डकसंसक्तानि शयनासनानि सेविता भवति स निर्ग्रन्थः ॥१॥ पदार्थान्वयः-तं जहा-जैसे कि-विवित्ताई-विविक्त—एकान्त-स्त्री, पशु, पंडक से रहित सयणासणाई-शय्या और आसन सेविता-सेवन करे से-वह निग्गन्थे-निर्ग्रन्थ हवइ-है नो-नहीं इत्थी-त्री पसु-पशु पण्डग-नपुंसक से संसत्ताईसंसक्त सयणासणाई-शय्या और आसन सेविचा सेवन करने वाला हवा-होने से वह
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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