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षोडशाध्ययनम् ]
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
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खलु
तेरेहिं भगवन्तेहिं दस बम्भचेरसमाहिठाणा पन्नत्ता, जे भिक्खू सोच्चा निसम्म संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले गुत्ते गुतिंदिए गुत्तबम्भयारी सया अप्पमत्ते विहरेखा ।
इमानि खल स्थविरैर्भगवद्भिर्दश ब्रह्मचर्यसमाधिस्थानानि प्रज्ञप्तानि यानि भिक्षुः श्रुत्वा निशम्य बहुलसंयमो बहुलसंवरो बहुलसमाधिर्गुप्तो गुप्तेन्द्रियो गुप्तब्रह्मचारी सदाऽप्रमत्तो विहरेत्
"
पदार्थान्वयः – इमे - ये खलु - निश्चय से ते- वे थेरेहिं - स्थविर भगवन्तेहिंभगवंतों ने दस - दश बम्भचेर - ब्रह्मचर्य के समाहिठाणा - समाधि स्थान पन्नत्ताप्रतिपादन किये हैं, जें-जिनको भिक्खू - भिक्षु सोच्चा - सुन करके निसम्म - हृदय में अवधारण करके संजमबहुले - संयमबहुल संवरबहुले - संवरबहुल समाहिबहुलेसमाधिबहुल गुत्ते-मन, वचन और काया जिसके गुप्त हैं गुतिदिए - गुप्तेन्द्रिय गुत्तबम्भयारी-गुप्तियों के सेवन से गुप्त ब्रह्मचारी सया - सदैव अप्पमत्ते - अ होकर विहरेजा - विचरे ।
-अप्रमत्त
मूलार्थ - स्थविर भगवंतों ने ये वक्ष्यमाण, ब्रह्मचर्य के दश समाधिस्थान प्रतिपादन किये हैं, जिनको सुनकर और समझकर भिक्षु संयमबहुल, संवरबहुल, समाधिबहुल और मन वचन कायगुप्त, गुप्तेन्द्रिय, गुप्तब्रह्मचारी और सदा अप्रमत्त होकर विचरे ।
टीका - शिष्य के प्रश्न का उत्तर देते हुए गुरु कहते हैं - वे ब्रह्मचर्य के दश समाधिस्थान ये हैं, जिनका कि आगे उल्लेख किया जाता है, जिनको सुनकर और विचार कर भिक्षु संयम बहुत करे, संघर बहुत करे, समाधि की प्राप्ति करे और मन, वचन तथा काया को वश में करे और पाँचों इन्द्रियों को विषयों से हटाकर गुप्तेन्द्रिय होवे, एवं ब्रह्मचर्य की नवगुप्तियों के सेवन से गुप्तब्रह्मचरी और सदा अप्रमत्त होकर विचरे ।
अब ब्रह्मचर्य के समाधि स्थानों में से प्रथम स्थान के विषय में कहते हैं