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________________ ६३४ ] उत्तराध्ययन सूत्रम् [ चतुर्दशाध्ययनम् टीका - महाराज इषुकार से उसकी राणी कमलावती कहती है कि जिस प्रकार संगल आदि बन्धनों को तोड़कर हस्ती सुखपूर्वक वन में चला जाता है, उसी प्रकार आप भी कर्मों के बन्धनों को तोड़कर आत्मवसति मोक्ष में चले जाओ । हे महाराज ! यह उपदेश बड़ा ही पथ्यरूप है। इसी के द्वारा जीव अपने ध्येय को प्राप्त करने में समर्थ होता है । है इषुकार ! इस प्रकार मैंने महात्माजनों से श्रवण किया है । यहाँ पर कमलावती ने अपने कथन को परम्परा प्राप्त बतलाते हुए उसे उपादेय तथा प्रामाणिक बतलाने का यत्न किया है तथा साधुजनों से सुना हुआ यह उपदेश उनकी विशिष्टता तथा पूज्यता का भी द्योतक है। क्योंकि साधुपुरुष सदा सत्यवक्ता और हितोपदेष्टा होते हैं। राणी कमलावती के उपदेश से जब राजा इषुकार को प्रतिबोध हो गया, तब वे दोनों- - राजा और राणी - किस ओर प्रवृत्त हुए, अब इस विषय का वर्णन करते हैं चइत्ता विउलं रज्जं, कामभोगे यदुच्चए । निव्विसया निरामिसा, निन्नेहा निप्परिग्गहा ॥ ४९ ॥ त्यक्त्वा विपुलं राज्यं, कामभोगाँश्च दुस्त्यजान् । निर्विषयौ निरामिषौ, निःस्नेहौ निष्परिग्रहौं ॥ ४९ ॥ पदार्थान्वयः—विउलं—विस्तीर्ण रज - राज्य को चहत्ता - छोड़कर य-और दुच्चए - दुस्त्यज कामभोगे - कामभोगों को निव्विसया - विषयरहित निरामिसाआमिष -- धनधान्यादि से रहित निन्नेहा - स्नेह से रहित और निष्परिग्गहापरिग्रह से रहित हुए । मूलार्थ — वे दोनों - राणी और राजा - विपुल राज्य और दुस्त्यज कामभोगों को छोड़कर विषयों से, धनधान्यादि पदार्थों से एवं स्नेह तथा परिग्रह से रहित हो गये । टीका - प्रस्तुत गाथा में देवी कमलावती के उपदेश की सफलता का दिग्दर्शन हैं अर्थात् राणी चाहती थी कि उसके पतिदेव सांसारिक पदार्थों के मोह को छोड़कर प्रब्रजित हो जायँ । सो उसके उपदेश से प्रतिबोध को प्राप्त हुए राजा ने अपना - विस्तृत राज्य तथा कामभोगादि पदार्थों का परित्याग करके दीक्षा के लिए प्रस्थान कर
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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