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________________ चतुर्दशाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् । [ ६२६ जलते हुए प्राणिवर्ग को देखकर हमें कुछ भी बोध नहीं होता । परन्तु जो विवेक और विचार रखने वाले पुरुष होते हैं, वे अन्य जीवों को संकट में पड़े देखकर द्रवित हो उठते हैं और उनकी रक्षा का उपाय करने लगते हैं; क्योंकि वे जानते हैं कि यह कष्ट किसी दिन हम पर भी आने वाला है तथा इनकी आत्मा और हमारी आत्मा दोनों समान हैं। अत: इनके कष्टों में सहानुभूति प्रदर्शित करना हमारा मुख्य कर्तव्य है । परन्तु जो विवेकरहित और प्रमादी जीव हैं, वे अन्य के कष्टों को देखकर उनमें सहायक होने के स्थान पर उलटा हर्ष मनाते हैं। हे राजन् ! हम इनमें से ही हैं क्योंकि हम यह प्रत्यक्ष देख रहे हैं कि सांसारिक पदार्थों-धन, स्त्री, पुत्र, बन्धु आदि–पर अत्यन्त स्नेह रखने वाले जीव इनको यहीं पर छोड़कर परलोक की यात्रा कर गये हैं। वे, जाते हुए न तो स्वयं इनको साथ लेकर गये और न ये स्वयं ही उनके साथ गये किन्तु ये सब यहीं पर पड़े रहे और यहीं पर इनको छोड़कर वे स्नेही चले गये। यह देखकर हमको कुछ भी ज्ञान प्राप्त नहीं होता । अन्यथा हमको इस बात का पूर्णतया भान रहना चाहिए कि हमारा वास्तविक कर्तव्य क्या है, हमारे साथ जाने वाला और यहाँ पर रह जाने वाला पदार्थ क्या है तथा हम किससे प्रेम करें और किससे उदासीन रहें एवं परलोकयात्रा में हमारा सहायक कौन हो सकता है, और जिन विषयभोगों में हम मूर्च्छित हो रहे हैं तथा जिनके लिए अनेक प्रकार के कष्ट सहने और अनर्थ करने को हम उद्यत रहते हैं, वे हमारा कहाँ तक भला कर सकते हैं, कहाँ तक हमारा साथ दे सकते हैं । तात्पर्य कि विचारपूर्वक अपने कर्तव्य का निश्चय करने में हम सर्वथा अज्ञ बने हुए हैं। इसी लिए दूसरे के त्यागे हुए धनादि वस्तु को प्राप्त करके हमें अत्यन्त हर्ष होता है, यह कितनी मृढ़ता और स्वार्थपरायणता है। अस्तु, जो पुरुष विवेकविकल नहीं विचारशील हैं, अब उनका कर्तव्य बतलाते हैं। जैसे किभोगे भोच्चा वमित्ता य, लहुभूयविहारिणो । . आमोयमाणा गच्छन्ति, दिया कामकमा इव ॥४४॥ भोगान् भुक्त्वा वान्त्वा च, लघुभूतविहारिणः । आमोदमाना गच्छन्ति, द्विजाः कामक्रमा इव ॥४४॥
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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