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४२ ]
पुरुसोत्तमो = पुरुषोत्तम पुरी नगरी में पुरे नगर में जो पुरंमि= पुर
पुरोहिओ= पुरोहित पुरोहियस्स = पुरोहित के पुरोहिओ = पुरोहित पुरोहियं = पुल्ल = पोली
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पुव्वकीलियं=पूर्वं स्त्री के साथ की हुई क्रीड़ा को
फुत्र्वरयं =पूर्व गृहस्थावास में स्त्री के साथ किया हुआ जो विषय-विलास
उसका
पुव्वकम्माई=पूर्व कर्मों को = पूर्व
पुवि = पूर्वजन्म में पूइप = पूजित है
पेहियं = देखना
पेहई देखता है।
पेहे देखकर चले
पूय=पूजा
पूयं = पूजा-सत्कार पुरा=पूर्व जन्म में देखा है क्या पेच्चत्थं-परलोक के प्रयोजन को तू पेसवग्गे सु-प्रेष्य- दास वर्ग में
'
पोमं पद्म
पोराणियं = पूर्व
पोराणिय= पुराणी फण = कंघी से
उत्तराध्ययनसूत्रम् -
६६५ | फन्दन्ति = अस्थिर स्वामी होने से चंचल
११०२
५८०
६५२, ६५४
५८३
५८५
५६१, ६२३
पोए=पोत के डूबने से दुखी होता पोपण-पोत से
है
पोत्थं - उसकी पूर्ण उपपत्ति को,
भावार्थ को
६३८ | फालिओ = फाड़ा गया
फरसुम् = परशु
फलट्ठा = फल के लिए
फलगं= पट्टादि
फलेइ = फल देती है
६७८
[ शब्दार्थ- कोषः
६०३ | फासा = तृणादिक स्पर्श फासिज्ज=स्पर्श करता हुआ फासु= निर्दोष
फासुयं =प्रासुक
फासे = स्पर्श करने लगा
६५१, ६३६ ७७४ | बद्ध= बाँधा गया
७३१
७६६
६८६
७७४
७०८
१०३८
८२०, ८२७, ८२६
८३१
६७८
फुडं स्फुट है, सत्य है, किन्तु फुसन्ति = स्पर्श करते हैं
११४२
११२६ | फेणबुब्बु = फेण के बुलबुले के
६३७
ब
७२१
६४५ बज्झमाणाण= बाध्यमान
६४२
६४७
१०००, १००४, ११०१ १०१२ ६६३, ६६४ ८१०, ८४१
४३
७८२
बद्धा = नियंत्रित किये हुए भी
६३१
८३१
६५२
बद्धो = जालादि में बाँधा गया
बन्ध=बन्धन आदि
बन्धणं = कर्मबन्धन को
बंधणं बन्धन को
१०७७
बंधवा = भाइयों को
६१५
बन्धवा - बान्धव
६२६ | बन्धवे = बन्धुजनों को बन्धू- भाई-भाईको अतः
८७८ बंधो बन्ध के कारण है।
१९२४ बंध=बन्ध को
७७७ बंभ=ब्रह्मचर्य
५८५ बंभं ब्रह्मचर्य
७७ | भवयं ब्रह्मचर्य व्रत है और ..
१०६२
६३१
८२८
८१७,८३०
se
दहह
६३३
UCY
७३२
८६४, ११२६
७३३
६०३
६०३
७६६, ६३५
စင်
८००