________________
२६]
. उत्तराध्ययनसूत्रम्
[ शब्दार्थ-कोषः
तहि उस मण्डप के पास ७२६, ८१३, ८१४ | ताण-त्राण-शरण ५६३, ६२६ २८, ३३, ६७६, ६८२, ६८५ ताणाय-रक्षा के लिए
११०४,१११० ता-पिता के पास तहेव उसी प्रकार ६६३, ७०४, ७२३, ७६४ | ताय हे पिता जी ! ६०८, ७०
७६५, ६४४,१०७१,१०७8 तायगो-पिता
१०८६,१०६१,१०६२,१०६३ तारइस्साम्मितारूँगा, अतः ७६१ तं-उसको ५६१, ५१८, ५६६, ६०६, ६१४ | तारुण्णे-तरुण अवस्था में ८०६ ६२३, ६२५, ६४६, ६५१, ६६७ तालणा-ताड़ना
७६६ ६७०, ६६६, ७३१, ७४८, ७७४ तालउउं-तालपुट
६६६ ७६२, ८४०, ११०, ४२७, ६३२ तावसो-तपस्वी होता है . ११२६, ११३० ६७३, ६८५, ६८८, ८६, ६६० तासिं-उनकी
६६४, ६५३ १०२५,१०३५, १०३६, १०४०,१०४७ ताहे उस समय ८४३, ८५२ १०४६,१०६६, १०७६, १११०, १११७ ताया हे तात !
३८ १११८,१११६,११२०,११२१, ११२७ तांउसको
ह ११३४ ति=इस प्रकार पूर्व परामर्श में १०६६ तंकहिमितिचे-वह कैसे ? यदि इस त्ति इस प्रकार विचार कर ५६८, ६३३, ६६० प्रकार कहा जाय तो ६६६, ६७२ | ५०४, ७३८, ७६६, ७७०, ७७१ ६७५, ६७८,६८०, ६८१, ६८५
६२८, ६५२, ६५५,१०६६,११०२ तं जहा-जैसे कि ६६६ तिक्ख तीक्ष्ण .
८१८ तं पि-तू भी .
६६१ तिक्खधारेहि-तीक्ष्ण धार वाले तम्ब-ताम्र
८३२ तिगिच्छियं अपने रोग का प्रतिकार तंमि-उस
८६८ करना तम्मिकाले-कर्म भोगने के समय १०७ तिगिच्छं-चिकित्सा'को
८८४ तम्मि -उस वन में
१०६६ | तिगुत्तिगुत्तो-तीन गुप्तियों से गुप्त ८५३, तम्मी -उस १०००, १००४, १०७८
६२४ तं वयं बूम माहणं उसको हम ब्राह्मण तितिक्खएजा-सहन करे .. कहते हैं ११२१, ११२२, ११२३ तिदण्डविरुओ=तीन दण्डों से विरत ६२४ ११२४, ११२५, ११२६, ११३२ तिन्दुयंतिदुक
१००० तंसि-तुम
६२० | तिनि-तीन-स्थानों की ता-इसलिए ६१६, ८७१, ९८४ त्तिय=त्रिपथ को और
७७३ ताई-वह बुद्ध ने
७४८
तियं कटिभाग ताइणं-पटकाय के रक्षकों को १००५ | तिरिच्छा=तियेच-सम्बन्धी ६५७, ६४० ताई-षटकाय का रक्षक ६४७ | तिरिक्खजोणिसु-तिर्यग् योनियों के . ताडिओ-ताड़ा गया
८३२ दुःख, अतः . . ७७६
६३६
१०८०