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उत्तराध्ययनसूत्रम्
[शब्दार्थ-कोषः
८२४
१५
६१२
८,१००७, १००८, १०१८, १०२६
ढ १११७,१११८, ११२१, ११२३, ११२६ |
ढंक ढंक और
११३६ जोइं-ज्योति अग्नि में
६० जोइसंग-ज्योतिषाङ्ग के ११३० जोइसंगविऊ ज्योतिषाङ्ग के वेत्ता हैं ११०५
ण-वाक्यालङ्कार में है जोगेहि-योगों से युक्त हुआ
णं-वाक्यालङ्कार में है ५८०, ६३३, ६८३
८५८ जोवणेण यौवन से
__७५५, ७६२, ७८५, ८४३,
___१८, १०३२
णीहासा हास्य रहित हो गई । ६७५ झसोयरो-मत्स्य के समान उदर ६५६ |
णे-हमको झाण-ध्यान
८५८,६२०
णेत्ता-सुनने वाला पहाणं-स्नान
पह झाणं ध्यान के झायइ ध्यान करता है
७२५
ण्हविओ-स्नान कराया गया ६५६ झिज्झइ-क्षीण हुआ जाता है झियायइ=ध्याताथा-धर्मध्यान करता था ७२४
त=उस आहार से ६५४, १२० तउयाई-त्रपु-लाख
८३२
तओ-तदनन्तर ६८३, ७२८, ७३३, ८०६ ठवित्ता स्थापन करके ७५३, ७६२
८५०, ८७३, ८६१, ८६४, ६१६ ठाणं-स्थान को-मोक्ष को ६१६, १०६२
६६१, ६६५, ६७०, ६४, १०१६ १०६३, १०६६
१०१७, . १०२०, १०३२, १०४३ ठाणा-स्थान
१०७१, १०८६, ११३४ ठाणा-स्थान
१०८०
तकहमितिचे-वह कैसे ठाणे-वह स्थान १०६४, १०६३ ठाणेहि स्थानों में जीव वसते हैं ७४०
तञ्च तथ्य है उसकी ठिओ-स्थित होकर ७७३, ६३१, ६७०
तच्छिओ-तराशा गया
६८६ ठिया स्थित हैं
| त जहा-जैसे कि १६, ६८० तजणा-तर्जना
နို င် तणफासा तृणस्पर्श
७६8 डज्ममाण जलते हुए प्राणियों को तणाणि-तृण
१०१२ देखकर ६२८ तणुं-स्तोक यत्न से
६३३ उज्झमाणेसु-जलते हुए
६२८ | तणुयं शरीर में उत्पन्न हुई डहन्ति भस्म करती है. १०४१, १०४२ तण्हा-प्यास से ७८६, ७६६, ८२४
१०४४ | तोहाइ-पिपासा से
६१६