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उत्तराध्ययनसूत्रम्
[शब्दार्थ-कोषः
७३३
६३५
अट्ठम्-अर्थ को मैं
६०६ | अजवयणम्मि-आर्य वचन में १११८ अहंपि मैं भी हूँ
६१५ अजिए-उपार्जन किये हुए। अहक्खायं यथाख्यात–अर्हतादि ने अजेव-आज ही
६१३ जिस प्रकार से वर्णन किया है ६३५ | अज्जो-हे आर्य!
८७१ अहाछन्द-स्वेच्छाचारी
६१३ अज्झप्प-अध्यात्म अहिगच्छन्ति-सन्मुख आते हैं १०३१ |
अज्झत्थहेऊ-अध्यात्महेतु मिथ्यात्वादि ६०३ अहिज-पढ़कर
अज्झवसाणंमि-अध्यवसान होने पर ७७५ अहियासएजा-सहन करता है ६४३ अझुसिरे-तृण पत्रादि से अनाकीर्ण अहियासिए-सहन करता है ६४३, ६४५
___स्थान में १०८६, १०८७ अहियं-अधिक
६६० अट्ठ-आठ २०७१, १०७३, १०८० अहिंस-अहिंसा
अट्ठमा-आठवीं
. १०७२ ' अही-साँप
८०५ अहीया-पढ़े हुए
अट्ठसहस्सलक्खणधरो-एक हज़ार आठ अहेऊहिं-कुहेतुओं से ७६६, ७६६ | लक्षणों को धारण करने वाला था ६५५ अहो दिन ५६६,७४७,७४८,८४,८६६,६३२ अट्टाए लिए अहो आश्चर्यमयी
८६६ अट्रिअप्पा-अस्थिर आत्मा ६० अहोत्था उत्पन्न हुई, और ८ ८१ | अत्तपन्नहा-आत्म-आप्त-प्रज्ञा को हनन । अहोरायं-अहोरात्र, रात दिन धर्म- ____करता है
७१२ कार्यों में
७४८
अत्तगवेसिस्स-आत्मगवेशी ६६६ अहोसिरो-नीचे सिर
अत्थ-अर्थ
. ७५०, ११३६ अक्खायं कथन किया है
अत्थं अर्थ और - Sut अग्गमहिसी-परराण थी
अत्थन्तम्मि-अस्त होने तक ७१५ अग्गरसम्प्रधान रस वाले
अस्थधमगई अर्थ, धर्म को गति और ८६५ अग्गिसिहा-अग्निशिखा-आगकी
अत्थि है ५६८, ६११, ७०४, १०५३, - ज्वाला
' १०६३ अग्गिहुत्तमुहा-अग्निहोत्रमुख १११३
अहाय प्रहण करके ७६५, ७६६ अग्गिणो-अग्नि की १०४४, १११६ अदाणं मार्ग को
७८७,७८६ अग्गिवण्णाई-अग्नि के समान तपा करके ८३३ |
अद्धाणे मार्ग में
१०४६ अग्गी-अग्नि ६०१, ६०६, १०४१, १०४३,
अन्नओ-अन्य स्थान से ११०४
१११७ अञ्चन्त-अत्यन्त ७६७, ८६८
अन्नं अन्य पदार्थ ६२६,८८६, १०८५, ११०५ अच्छन्तं-बैठे हुए
अन्न-अन्न
८८६ अच्छहि स्थित हैं
अन्नप्पमत्ते अन्न में प्रमत्त अथवा अन्य अच्छिवेयणा आँखों में वेदना हो .
दूसरों के लिए दूषित प्रवृत्ति करने . रही थी
८१
६६४
वाला