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________________ ११४२ ] उत्तराध्ययनसूत्रम्- [पञ्चविंशाध्ययनम् . खवित्ता पुव्वकम्माई, संजमेण तवेण य। जयघोसविजयघोसा, सिद्धिं पत्ता अणुत्तरं ॥४५॥ त्ति बेमि। इति जन्नइज पञ्चवीसइमं अज्झयणं समत्तं ॥२५॥ क्षपयित्वा पूर्वकर्माणि, संयमेन तपसा च । जयघोषविजयघोषौ , सिद्धि प्राप्तावनुत्तराम् ॥४५॥ इति ब्रवीमि। इति यज्ञीयं पञ्चविंशतितममध्ययनं समाप्तम् ॥२५॥ पदार्थान्वयः-खवित्ता-क्षय करके पुव्वकम्माई-पूर्वकर्मों को संजमेणसंयम से य-और तवेण-तप से जयघोसविजयघोसा-जयघोष और विजयघोष अणुत्तरं-सर्वप्रधान सिद्धि-सिद्धि को पत्ता-प्राप्त हुए । ति बेमि-इस प्रकार मैं कहता हूँ। यह यज्ञीय नामक पच्चीसवाँ अध्ययन समाप्त हुआ। ____ मूलार्थ-संयम और तप के द्वारा पूर्वकर्मों को चय करके. जयघोष और विजयघोष दोनों सर्वप्रधान सिद्धगति को प्राप्त हो गये। टीका प्रस्तुत गाथा में दोनों मुनियों की दीक्षा के फल का वर्णन किया गया है । यथा-दोनों मुनियों ने संयम और तप के द्वारा कर्मों का क्षय करके पुनरावृत्तिशून्य सर्वप्रधान मोक्षगति को प्राप्त कर लिया । यही मुनिवृत्ति के धारण और आचरण करने का अन्तिम फल है। कर्मों को क्षय करने के लिए संयम और तप ही कारण है। अथवा यों कहिए कि कर्म, तप और संयम के द्वारा ही क्षय किये जाते है। इनको क्षय करने का और कोई साधन नहीं, यह इस गाथा का ध्वनितार्थ है। इसके अतिरिक्त 'त्ति बेमि' का अर्थ प्रथम की भाँति ही समझ लेना चाहिए । पञ्चविंशाध्ययन समाप्त।
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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