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पञ्चविंशाध्ययनम् ]
हिन्दीभाषाटीकासहितम् |
तदनन्तर क्या हुआ ? अब इसके विषय में कहते हैं
अह से तत्थ अणगारे, मासक्खमणपारणे । विजयघोसस्स जन्नम्मि, भिक्खमट्ठा उवट्टिए ॥५॥
[ ११०३
अथ
स तत्रानगारः, मासक्षमणपारणायाम् । विजयघोषस्य यज्ञे, भिक्षार्थमुपस्थितः
11411 पदार्थान्वयः:- अह - अथ से - वह अणगारे - साधु तत्थ - वहाँ मासक्खमणमासोपवास की पारणे - पारणा के लिए विजयघोसस्स - विजयघोष के जन्नम्मि- यज्ञ मैं भिक्खमट्ठा - भिक्षा के लिए उवट्ठिए- उपस्थित हुआ ।
मूलार्थ - उस समय वह अनगार मासोपवास की पारणा के लिए विजयघोष के यज्ञ में भिचार्थ उपस्थित हुआ ।
टीका - जिस समय विजयघोष ब्राह्मण यज्ञ कर रहा था, उस समय जयघोष मुनि मासोपवास की तपश्चर्या में लगा हुआ था । जब उसके मासोपवास की पारणा का दिन आया, तब वह जयघोष मुनि आवश्यक नित्य क्रियाओं से . निवृत्त होकर भिक्षा के लिए उस नगरी में भ्रमण करता हुआ, जहाँ पर विजयघोष ब्राह्मण यज्ञ कर रहा था, वहाँ पर उपस्थित हुआ । तात्पर्य यह है कि साधु की वृत्ति निर्दोष भिक्षा ग्रहण करने की है। सो वह अपनी साधुवृत्ति के अनुसार पर्यटन करता हुआ विजयघोष की यज्ञशाला में पहुँच गया । 'भिक्खमट्ठा' इस वाक्य में मकार अलाक्षणिक है और 'अट्ठा' में अकार का दीर्घ होना एवं बिन्दु का अभाव होना यह सब प्राकृत के कारण ही समझना चाहिए ।
किसी किसी प्रति में ' भिक्खरखऽट्ठ— भैक्ष्यस्यार्थे' ऐसा पाठ भी देखने में आता है । तदनन्तर क्या हुआ, अब इस विषय में कहते हैं
समुवट्ठियं तहिं सन्तं, जायगो
पडिसेहए ।
न हु दाहामि ते भिक्खं, भिक्खू जायाहि अन्नओ ॥६॥
प्रतिषेधयति ।
याचखान्यतः ॥६॥
समुपस्थितं तत्र सन्तं, याजकः
न खलु दास्यामि तुभ्यं भिक्षां, भिक्ष