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________________ ११०० ] उत्तराध्ययनसूत्रम् [ पञ्चविंशाध्ययनम् अहिंसा आदि पाँच महाव्रतों का यथाविधि पालन करने वाला था । इस कथन से द्रव्ययज्ञ की निकृष्टता अथच निषेध सूचन किया गया है। यज्ञ के दो भेद हैं— एक द्रव्ययज्ञ, दूसरा भावयज्ञ । इनमें द्रव्ययज्ञ श्रौत, स्मार्त भेद से दो प्रकार का है । श्रीतयज्ञ के वाजपेय और अग्निष्टोमादि अनेक भेद हैं। स्मार्त यज्ञ भी कई प्रकार के हैं । इन द्रव्ययज्ञों में जो श्रौत यज्ञ हैं, उनमें तो पशुहिंसा अवश्य करनी पड़ती है और जो स्मार्त यज्ञ हैं, वे पशु आदि त्रस जीवों की हिंसा से तो रहित हैं परन्तु स्थावर जीवों की हिंसा उनमें भी पर्याप्त रूप से होती है। और जो भाव यज्ञ है, उसमें किसी प्रकार की हिंसा की संभावना तक भी नहीं है। उसी को यम यज्ञ कहते हैं । मुनि जयघोष पूर्वाश्रम में ब्राह्मण होते हुए भी सर्वविरति रूप साधु धर्म में दीक्षित हो चुके थे। इसलिए वे सर्व प्रकार के द्रव्ययज्ञों के त्यागी और भाव यज्ञ के अनुरागी थे । इसके अतिरिक्त जयघोष नाम से इतना तो अवश्य प्रतीत होता है कि पूर्वाश्रम में उसकी हिंसात्मक द्रव्ययज्ञों के अनुष्ठान में अधिक प्रवृत्ति रही होगी । कारण कि यजनशील होने से जयघोष इस नाम के निष्पन्न होने की कल्पना सर्वथा निराधार तो प्रतीत नहीं होती किन्तु उस समय की बढ़ी हुई याज्ञिक प्रवृत्ति की ओर ध्यान देते हुए उक्त कल्पना कुछ विश्वास योग्य ही प्रतीत होती है अब उसके व्यक्तित्व का और पर्यटन करते हुए फिर से वाराणसी नगरी में पधारने का उल्लेख करते हैं। यथा । इन्दियग्गामनिग्गाही, मग्गगामी महामुनी । गामाणुगामं रीयंते, पत्तो वाणारसिं पुरिं ॥२॥ इन्द्रियग्रामनिग्राही मार्गगामी महामुनिः । ग्रामानुग्रामं रीयमाणः, प्राप्तो वाराणसीं पुरीम् ॥२॥ पदार्थान्वयः --- इन्दियग्गाम- इन्द्रियों के समूह का निग्गाही - निग्रह करने वाला मग्गगामी - मुक्तिपथ में गमन करने वाला महामुखी - महामुनि गामाणुगामं - प्रामानुग्राम रीयंते-फिरता हुआ वाणारसिं - वाराणसी पुरिं- पुरी को पत्तो - प्राप्त हुआ । मूलार्थ – इन्द्रियसमूह का निग्रह करने वाला, मोचपथ का अनुगामी. वह महामुनि ग्रामानुग्राम विचरता हुआ वाराणसी नाम की नगरी को प्राप्त हुआ। "
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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