________________
चतुविशाध्ययनम् ]
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
[१०६७
पदार्थान्वयः-एआओ-ये पवयणमाया-प्रवचन माता जे-जो सम्मभली प्रकार से मुणी-साधु आयरे-आचरण करे सो-वह सव्व-सर्व संसारा-संसार से पण्डिए-पंडित खिप्पं-शीघ्र विप्पमुच्चइ-छूट जाता है त्ति बेमि-ऐसा मैं कहता हूँ।
. मूलार्थ-जो मुनि इन प्रवचन माताओं का सम्यक् भाव से आचरण करता है, वह पण्डित सर्व संसारचक्र से शीघ्र ही छूट जाता है। ऐसा मैं कहता हूँ।
टीका—प्रस्तुत गाथा में समिति और गुप्ति रूप आठ प्रवचन माताओं की सेवा–सम्यक् रूप से पालन करने का फल बतलाया गया है। शास्त्रकार कहते हैं कि जो तत्त्ववेत्ता मुनि उपरोक्त प्रवचन माताओं का सम्यक् प्रकार से आचरण करे, वह मुनि बहुत शीघ्र नरक, तिर्यग्, मनुष्य और देवता इन चारों गति रूप संसारचक्र से सर्वथा मुक्त हो जाता है । जो तीनों काल के भावों को सम्यक् प्रकार से जानता हो, उसे ही मुनि कहते हैं और वही प्रवचन माता के पालने में समर्थ हो सकता है, साधारण व्यक्ति नहीं। इसी अभिप्राय से प्रस्तुत गाथा में मुनि
और पण्डित शब्द का प्रयोग किया है । इसलिए प्रत्येक भव्य आत्मा को योग्य है कि वह मोक्षगमन के लिए प्रवचन माताओं की सम्यक् प्रकार से सेवा करे अर्थात् विशुद्ध भावों से इनका आचरण करके मुक्ति को प्राप्त करे । 'त्ति बेमि' की व्याख्या प्रथम की भाँति ही जान लेनी।
चतुर्विंशाध्ययन समाप्त ।
-