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________________ चतुविशाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् । [१०६५ . जो मुष्टि आदि का अभिघात किया जाय, उसको समारम्भ कहते हैं । एवं यदि संकल्पों के अनुसार पर जीवों का नाश ही कर दिया जाय तो उसका नाम आरम्भ है। अतः संयमशील मुनि उक्त आरम्भादि से अपने आत्मा को सर्वथा निवृत्त करने का प्रयत्न करे, जिससे कि काय का योग स्थिर होकर वह कायगुप्ति के रूप में परिवर्तित हो जाय, जिसे कि काययोग का निरोध कहते हैं । यदि काया का निरोधकायगुप्ति न हो सके तो कायसमवधारण तो अवश्य करना चाहिए। काया को अशुभ व्यापारों से निवृत्त करना और शुभ योगों में प्रवृत्त करना कायसमवधारण कहलाता है। ___अब शास्त्रकार समिति और गुप्ति के परस्पर भेद का वर्णन करते हुए कहते हैं किएयाओ पञ्च समिईओ, चरणस्स य पवत्तणे। गुत्ती नियत्तणे वुत्ता, असुभत्थेसु सव्वसो ॥२६॥ एताः पञ्च समितयः, चरणस्य च प्रवर्तने । गुप्तयो निवर्तने उक्ताः, अशुभार्थेभ्यः सर्वेभ्यः ॥२६॥ . पदार्थान्वयः-एयाओ-ये पञ्च-पाँच समिईओ-समितियाँ चरणस्सचारित्र की पवत्तणे-प्रवृत्ति के लिए य-और गुत्ती-गुप्तियाँ सव्वसो-सर्व असुभस्थेसुअशुभ अर्थों से य-शुभ अर्थों से नियत्तणे-निवृत्ति के लिए वुत्ता-कही है। - मूलार्थ-ये पाँचों समितियां चारित्र की प्रवृत्ति के लिए कही गई हैं और तीनों गुप्तियाँ शुभ और अशुभ सर्व प्रकार के अर्थों से निवृत्ति के लिए कथन की गई है। टीका-प्रस्तुत गाथा में प्रयोजन विशेष को लेकर समिति और गुप्ति का परस्पर भेद बतलाया गया है। समिति प्रवृत्ति रूप अर्थात् चारित्र में शुद्धि की विधायक हैं और गुप्तियाँ मन, वचन, काया के योगों की निरोधक होने से निवृत्ति रूप हैं । जैसे कि-पाँचों समितियों का विधान, चारित्र की शुद्धि के लिए किया गया है। क्योंकि जब समितिपूर्वक गमनागमनादि क्रियाओं में प्रवृत्ति होगी, तब ही चारित्र की शुद्धि अर्थात् निर्मलता होगी। इसलिए चारित्रसंशोधनार्थ ही पाँचों प्रकार की समितियों का प्रतिपादन किया गया है । गुप्तियों का कथन शुभ
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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