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________________ १०६२ ] उत्तराध्ययनसूत्रम् - [ चतुर्विंशाध्ययनम् सच्चा तहेव मोसा य, सच्चमोसा तहेव य । चउत्थी असच्चामोसाय, वयगुत्ती चउव्विा ॥२२॥ सत्या तथैव मृषा च सत्यामृषा तथैव च । चतुर्थ्य सत्यामृषा तु, वचोभिश्चतुर्विधा ॥२२॥ पदार्थान्वयः:- सच्चा - सत्या तहेव - उसी प्रकार मोसा - मृषा य-पुनः सच्चम्ोसा-सत्यामृषा तहेव - उसी प्रकार य-फिर चउत्थी - चतुर्थी असच्चामोसा-असत्या मृषा वयगुत्ती - वचनगुप्ति चउव्विहा - चार प्रकार की है । मूलार्थ —— सत्यवाग्गुप्ति, मृषावाग्गुप्ति, तद्वत् सत्यामृषावाग्गुप्ति और चौथी असत्यामृषावाग्गुप्ति इस प्रकार वचनगुप्ति चार प्रकार से कही गई है। टीका- - इस गाथा में वचनगुप्ति के चार प्रकार बतलाये गये हैं । जीव को जीव ही कथन करना सत्य वचनयोग है । जीव को अजीव कहना असत्य वचन योग है। बिना निर्णय किये ऐसा कथन कर देना कि आज इस नगर में सौ बालकों का जन्म हुआ है, इसको मिश्र वाग्योग कहते हैं और असत्या मृषा वाग्योग उसका नाम है जिसमें ऐसा कहा जाय कि स्वाध्याय के समान अन्य कोई तप कर्म नहीं है । तात्पर्य यह है कि इस प्रकार के बाग्योग को असत्यामृषा वागयोग कहते हैं । इन चारों प्रकार के वचनयोगों के निरोध का नाम वचनगुप्ति है । यहाँ पर इतना स्मरण रखना कि मनोगुप्ति के पश्चात् वाग्गुप्ति होती है क्योंकि प्रथम जो विचार मन में उत्पन्न होता है, उसी का वाणी के द्वारा प्रकाश किया जाता है। तथा ये दोनों ही कर्म निर्जरा के हेतुभूत हैं । अब वचनगुप्ति के विषय का वर्णन करते हैं - " संरम्भसमारम्भे आरम्भे य तव य । वयं पवत्तमाणं तु, नियत्तेज्ज जयं जई ॥२३॥ संरम्भे समारम्भे, आरम्भे च तथैव च । वचः प्रवर्तमानं तु निवर्तयेद्यतं यतिः ॥२३॥
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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